बेरोजगार निष्काम बनाया
प्राणहीन निष्प्राण बनाया
खूब रुलाया खूब सताया
घर-घर में संकट ही लाया
देकर ढेरों ही दुख टीस
जा रहा है वर्ष ये बीस....
कुछ शर्म है कुछ ग्लानि है
जितने दिये लाभ हानि है
मनमर्जी कुछ मनमानी है
लापरवाही कई, शैतानी है
झुकाकर अपना ही शीश
जा रहा है वर्ष ये बीस....
फिर उम्मीद की बंधेगी डोर
फिर से होगी मोहक भोर
मंदिर में घंटे की शोर
होठों पर स्मित विभोर
होगी फिर खुशियों की जीत....
जा रहा है वर्ष ये बीस....
प्रीती-नीति का भाव विधान
मस्जिद में आयत की तान
स्वजन नेह का मान गुमान
फिर से हंसेगा हिंदुस्तान
विहग मधुर गायेगी गीत
जा रहा है वर्ष ये बीस....
भारती दास ✍️
सार्थक रचना।
ReplyDeleteआने वाले नूतन वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।
बहुत बहुत धन्यवाद सर
ReplyDeleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर
Deleteसार्थक सटीक ।
ReplyDeleteसुंदर सृजन।
बहुत बहुत धन्यवाद कुसुम जी
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद सर
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