अहले वतन तू कर ना गम
तेरे पुत्र ने बांधा कफ़न
जिसने किया तुझपर सितम
उसका मिटा देंगे भरम.
हमने तो खाई है कसम
तेरे लिए निकलेगा दम
इच्छाओं का करके दमन
अर्पण करेंगे तन ये मन.
पहलू में हरपल मैं रहूं
कदमों में रखकर शीश यूं
है आरज़ू यही जूस्तजू
दामन में भर दूं मैं लहू.
ना चैन है ना करार है
सीने में दर्द अपार है
अश्कों की बहती धार है
रोती सिसकती बहार है.
क्यों कांपता ये पहाड़ है
खोया कहां हुंकार है
क्या भूल है क्या विकार है
क्यों हार ये स्वीकार है.
दुष्कर्म का ही प्रचार है
साक्षी सकल संसार है
उपचार हो ये पुकार है
करना नहीं उपकार है.
एक आह्वान है आपकी रचना देश एक उन सभी लोगों के नाम जो कुछ करना चाहते हैं देश के लिए ... बहुत ओजस्वी भाव ...
ReplyDeleteधन्यवाद सर 🙏
Deleteधन्यवाद सर 🙏
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteधन्यवाद अनुराधा जी
Deleteसन्देश साफ़ दिए हैं.....सुनाई पड़ते हैं !
ReplyDeleteधन्यवाद सर
ReplyDeleteधन्यवाद रविन्द्र जी
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब प्रेरक रचना...
ReplyDeleteThanks
ReplyDeleteSudha ji