Wednesday, 31 January 2018

वो बेटी है



जीवन में भरती नव-नव मोद
खेलती-कूदती करती विनोद
जो मनुहार में जीती है , वो बेटी है
जो रुद्ध कंठ से रोती है
झकझोर ह्रदय को करती है
जो पलकों पर सावन रखती है , वो बेटी है
पल-पल विकलित क्षण-क्षण विचलित
शिशु सौरभ सा स्मित पुलकित
जो शशि छूने को मचलती है , वो बेटी है
कोमल-कोमल अंग-राग
अरुण नयन में भरे अनुराग
जो दीपशिखा सी जलती है , वो बेटी है
सुख में दुःख में अंधकार में
वाणी से शोभित संस्कार में
जो प्रेम की धारा बहाती है , वो बेटी है    
  

No comments:

Post a Comment