Monday, 19 August 2024

हे नीलकंठ अंबर से उतरो

 


नित्य कुपथ बनता दुर्जन का

क्यों शिव तुममें शक्ति नहीं है?

उम्मीदें सब टूट रही है 

क्या नारी की मुक्ति यही है ?

असुर निरंतर कुचल रहे हैं 

शील संयम के तारों को 

दुःखद अंत करता जीवन का

सुनता नहीं चीत्कारों को।

स्वजन परिजन चीखते रहते 

क्रंदन करता मां-बाप का मन 

निडर दरिंदा घूमता रहता 

पिशाच बनकर रात और दिन।

प्राण से प्यारी सुकुमारी को 

कैसे बचायें महाकाल बता

रौद्र रूप फिर अपनाओ तुम 

मिटा दो दैत्यों की क्षमता।

हे नीलकंठ अंबर से उतरो 

अब आश तुम्हीं से है जग की

निष्ठुर बलि जो सुता चढ़ी है 

न्याय मिले है दुआ सबकी।

भारती दास ✍️ 

Wednesday, 14 August 2024

हे प्रवीर सैनिकों

धीर वीर सैनिकों

शूरवीर सैनिकों

तुम पर नाज़ है हमें

हे प्रवीर सैनिकों

धीर वीर सैनिकों....

तुम सतर्क व्याघ्र से

तुम समर्थ साहसी 

मुश्किलें अनंत है 

चुनौतियॉं अथाह सी 

धीर वीर सैनिकों....

राष्ट्र के सपूत तुम 

सजग देशभक्त तुम 

जन सुरक्षा के लिए 

जागते हो रात दिन 

धीर वीर सैनिकों....

आतंकी उग्रवाद से 

गोली की बौछार से 

जीतते हो रण सदा 

वीरता अपार से

धीर वीर सैनिकों....

रहते सबसे दूर तुम 

सहते क्लेश और गम

मातृभूमि के लिए 

बहाते लाल रक्त तुम 

धीर वीर सैनिकों....

भारती दास ✍️