Saturday, 30 December 2023

पल बहुमूल्य निकलता जाता

 पल बहुमूल्य निकलता जाता

कुछ न कुछ वह कहता जाता

 क्षीण मलीन होती अभिलाषा

अंधकार सी घिरी निराशा

विकल विवश सब सहता जाता

कुछ न कुछ वह कहता जाता....

रुपहली रातों की माया

मन उन्मादी शिथिल सी काया

मोह प्राण का बढ़ता जाता

कुछ न कुछ वह कहता जाता....

वर्षा धूप शिशिर सब आया

नियति प्रेरणा बन मुस्काया

काल निरंतर दृष्टि रखता

कुछ न कुछ वह कहता जाता.... 

राष्ट्र प्रीति से रहता सब गौण

मुखर चुनौती लेता है कौन 

अपना अंतिम भेंट दे जाता

कुछ न कुछ वह कहता जाता....

भारती दास ✍️


7 comments:

  1. सुन्दर | शुभकामनाएं |

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    1. धन्यवाद सर
      नववर्ष मंगलमय हो

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  2. बहुत ही सुन्दर सृजन,नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं आपको,🙏

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    1. धन्यवाद कामिनी जी
      नववर्ष मंगलमय हो

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  3. पल जाते है ... नये तभी आते है ... नया साल मुबारक ...

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  4. क्या बात है कितनी खूबसूरती से आपने समय की गहराई को शब्दों में ढाल दिया। ऐसा लगा जैसे वक्त खुद कान में कुछ फुसफुसा रहा हो, कुछ सिखा रहा हो। हर पंक्ति में एक चुप सी आवाज़ है, जो इंसान को खुद से बातें करने पर मजबूर कर देती है। सच्ची बात कहूं तो तुमने शब्दों से वक्त को ज़िंदा कर दिया। Keep writing !!!

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