पल बहुमूल्य निकलता जाता
कुछ न कुछ वह कहता जाता
क्षीण मलीन होती अभिलाषा
अंधकार सी घिरी निराशा
विकल विवश सब सहता जाता
कुछ न कुछ वह कहता जाता....
रुपहली रातों की माया
मन उन्मादी शिथिल सी काया
मोह प्राण का बढ़ता जाता
कुछ न कुछ वह कहता जाता....
वर्षा धूप शिशिर सब आया
नियति प्रेरणा बन मुस्काया
काल निरंतर दृष्टि रखता
कुछ न कुछ वह कहता जाता....
राष्ट्र प्रीति से रहता सब गौण
मुखर चुनौती लेता है कौन
अपना अंतिम भेंट दे जाता
कुछ न कुछ वह कहता जाता....
भारती दास ✍️
सुन्दर | शुभकामनाएं |
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteनववर्ष मंगलमय हो
बहुत ही सुन्दर सृजन,नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं आपको,🙏
ReplyDeleteधन्यवाद कामिनी जी
Deleteनववर्ष मंगलमय हो
पल जाते है ... नये तभी आते है ... नया साल मुबारक ...
ReplyDeleteधन्यवाद सर
ReplyDeleteक्या बात है कितनी खूबसूरती से आपने समय की गहराई को शब्दों में ढाल दिया। ऐसा लगा जैसे वक्त खुद कान में कुछ फुसफुसा रहा हो, कुछ सिखा रहा हो। हर पंक्ति में एक चुप सी आवाज़ है, जो इंसान को खुद से बातें करने पर मजबूर कर देती है। सच्ची बात कहूं तो तुमने शब्दों से वक्त को ज़िंदा कर दिया। Keep writing !!!
ReplyDelete