श्रावण शुक्ल-पूर्णिमा अतिविशिष्ट एवम महत्वपूर्ण तिथि मानी जाती है .इस दिन भाई –बहन के स्नेहिल बंधन का पर्व रक्षा –बंधन मनाया जाता है .बहन ,पावन-प्रेम से सरावोर कच्चे धागे को अपने भाई की कलाई पर बाँधती है और इसके बदले रक्षा एवम संरक्षण का वचन लेती है .
‘’ रक्षा –बंधन ‘’ऐसा बंधन है जो जिसे भी बांधा जाये उसकी रक्षा का संकल्प किया जाता है. किसी भी रूप में रक्षा का प्रण लेना ही रक्षा बंधन कहलाता है .रक्षा –बंधन के सन्दर्भ में कई कथाएँ प्रचलित है .
मान्यता है कि देवासुर संग्राम में सुर –असुर दोनों ही एक –दूसरे पर विजय प्राप्त करने के लिये युद्ध में विरत थे .
देवता अपने अस्तित्व एवम धर्म के लिये नीति युद्ध कर रहे थे वहीँ असुर अपने अहंकार के लिये साम्राज्य स्थापित करना चाहते थे.
धर्म –अधर्म का ये युद्ध कई वर्षों तक चला और अंत में असुर ही विजयी हुये.पराजय सदा ही पीड़ा,कष्ट एवम चिंता को बढाती है .इस पराजय के बाद देवताओं की स्थिति दयनीय हो गयी थी,तो इंद्राणी ने श्रावण शुक्लपूर्णिमा के दिन विधानपूर्वक रक्षासूत्र तैयार कर उसे अभिमंत्रित किया और देवगुरु वृहस्पति ने स्वस्तिवाचन के साथ इंद्रदेव के दायें हाथों में बांध दिया जिसके फलस्वरूप इंद्रदेव फिर से विजय होकर स्वर्ग के राजा बने.उसी समय से रक्षा-बंधन का पर्व मनाया जाने लगा .
रक्षा बंधन का ऐतिहासिक महत्त्व मेवाड़ की रानी कर्मवती से जुड़ा हुआ है. गुजरात के राजा बहादुरशाह ने मेवाड़ पर हमला कर दिया और मेवाड़ को चारों ओर से घेर लिया ऐसे संकट के समय में रानी कर्मवती ने हुमायूँ को राखी भेजी और सहायता की आशा की, हुमायूँ ने भी राखी की लाज रखी तथा रानी की हर तरह से रक्षा की. हुमायूँ , बहादुर शाह की ही जाति का था परन्तु उसने कुछ भी चिंता न करके एक हिन्दू बहन की रक्षा की और सम्मान दिया. इस त्योहार का धार्मिक तथा ऐतिहासिक महत्त्व सर्व –विदित है .इससे एकता का भाव प्रवाहित होता है.बहन,भाई को राखी बाँधती है व भाई हर संभव रक्षा करने की वचन देता है. लेकिन वर्तमान समय में राखी का बंधन एक प्रतीक बनकर रह गया है.अपने वचन का निर्वाह कितना कर पाता है ये तो बहनों की दुर्दशा देखकर पता चलता है. हिंसा, हत्या, छेड़-छाड़ और बलात्कार कितने ही घटनायें आये दिन होते रहते हैं. अपनी बहन की रक्षा के वचन देते हैं तथा दूसरे की बहन के साथ गंदी हरकत करते है. क्या यही संकल्प हर वर्ष लेते हैं?कितने ही ऐसे प्रश्न है जिसके उत्तर नहीं मिलते है. हमारा ह्रदय संवेदनशील है या नहीं,इसपे भी शक होता है.
रक्षा –बंधन ,खूबसूरत व्यवसाय बन गया है .इस दिन ढेरों राखियाँ,मिठाईयां एवम अन्य उपहारों की खूब बिक्री होती है.लोग स्नेह भूल कर मुनाफा ही कमाते है.परंपरा की प्रवाह में रक्षा –बंधन बस एक पर्व रह गया है.वो उत्साह वो उमंग न जाने कहाँ खो गयी है.भाई –बहन एक दूजे के लिए समय नहीं निकाल पाते है,लेकिन इसी बहाने मिलना हो जाता है.हमारी नीरस जिन्दगी में ये त्योहार प्रेम की वर्षा करते है.यह सांस्कृतिक त्योहार विश्व –प्रेम की पुनरावृति कर जीवन में खुशियाँ प्रदान करते है.
जीवन में सहयोग सिखाता
सब-जन में उत्साह समाता
प्रेम-रूप अमृत की वर्षा
सावन की सौगात है अच्छा.
भारती दास ✍️