Friday, 30 December 2022

वक्त हूं मैं बदल जाता हूं

 


हर कर्तव्य निभा जाता हूं

वक्त हूं मैं बदल जाता हूं....

देखता हूं सितारों का मेला

चांद और सूरज का सब खेला

मुदित स्नेह हर्षा जाता हूं

वक्त हूं मैं बदल जाता हूं....

तिमिर जाल का घोर अंधेरा

हो चाहे मादक सुख धारा

सब कुछ उर में समा जाता हूं

वक्त हूं मैं बदल जाता हूं....

आह रात की रूदन दिवस की

मही निरीह सी दुःखी मलीन सी

नेत्र नीर मैं बहा जाता हूं

वक्त हूं मैं बदल जाता हूं....

भारती दास ✍️


Saturday, 24 December 2022

वधू वसुधा सुख पाने को है

 

मेले जैसा ही है संसार
जहां साधनों का लगा भंडार
विषय भोग से सजा बाजार
लगे भागदौड़ में लोग हजार.
परम पिता से बिछड़ रहे हैं
लोभ मोह से संवर रहे हैं
शील संयम के बिखर रहे हैं
क्रोध की ज्वाला प्रखर रहे हैं.
प्राण की बाती बुझ रहे हैं
सत्य की ज्योति जूझ रहे हैं
उत्कर्ष हर्ष की डूब रहे हैं
संतप्त प्रचंड भी खूब रहे है.
रात की कालिमा जा रही है
प्रात की लालिमा छा रही है
मौन मुकुल खिल जाने को है
वधू वसुधा सुख पाने को है.
भारती दास ✍️

Saturday, 3 December 2022

गीता वचन शुभ ज्ञान है

 पापमोचन -तापशोषण 

गीता वचन शुभ ज्ञान है,

कृष्ण की वाणी सुहानी से

सुखद मन प्राण है.

जन्म जीवन का जहां है

मौत निश्चित है वहां 

मत शोक कर हे पार्थ तुम

यही सत्य है हरदम यहां.

जो आज तेरा है यहां

वो दूसरे का होगा कल

क्या खोया है तुमने यहां पर 

जिसके लिए तेरा मन विकल.

जो होना है होकर रहेगा 

तू व्यर्थ में चिंता न कर 

कर्म ही कर्त्तव्य केवल 

फल जो विधाता दे मगर.

न अतीत में न भविष्य में

जीवन अभी इसी पल में है 

परिणाम की न कर आकांक्षा 

कर्म से ही पथ सफल है. 

आस्था न हो दूषित 

ये ग्रंथ कर्म प्रधान है

दुर्दशा न हो कभी

उस वचन का जो महान है.

भारती दास ✍️