Saturday, 26 November 2022

भीष्म की मन की व्यथा

 


हजारों साल से भी पुरानी

रणगाथा की अमिट कहानी

शांतनु नाम के राजा एक

थे कर्मठ उदार-विवेक.

गंगा के सौंदर्य के आगे 

झुक गये वे वीर अभागे

करनी थी शादी की बात

पर गंगा थी शर्त के साथ.

मुनि वशिष्ठ ने शाप दिया था

अष्ट वसु ने जन्म लिया था

देवतुल्य वसु थे अनेक

उनमें से थे देवव्रत एक.

कर्मनिष्ठ वे धर्मवीर थे

प्रशस्त पथ पर बढे वीर थे

अटल प्रतिज्ञा कर बैठे थे

विषम भार वो ले बैठे थे.

भीषण प्रण को लिए खड़े

नाम में उनके “भीष्म” जुड़े 

भीष्मपितामह वो कहलाये

कौरव-पांडव वंश दो आये.

वंश बढा और बढ़ी थी शक्ति

पर दोनों में नहीं थी मैत्री

शत्रु सा था उनमें व्यवहार

इक-दूजे में नहीं था प्यार.

सत्ता कहती कौन सबल है

प्रजा चाहती कौन सुबल है

किसका पथ रहा है उज्जवल

कौन बनेगा अगला संबल.

राज्य-सिंहासन ही वो जड़ था

जिसमें मिटा सब वीर अमर था

अपमान-मान ने की परिहास

छीन ली जीवन की हर आस.

छल-कपट से जीत हो जिसकी

पुण्य-प्रताप मिटे जीवन की

बस स्वाभिमान यही था अंतिम

युद्ध ही एक परिणाम था अंतिम.

महाभारत की भीषण रण में

मिट गये वीर अनेक ही क्षण में

धरती हुई खून से लाल

बिछड़ गये माता से लाल.

शर-शय्या पर भीष्म पड़े थे

नेत्र से उनके अश्क झड़े थे

आँखों में जो स्वप्न भरे थे

बिखर-बिखर कर कहीं पड़े थे.

बैर द्वेष इर्ष्या अपमान 

मिटा दिए वंशज महान

कुरुक्षेत्र का वो बलिदान

देती सीख हमें शुभ ज्ञान.

भारती दास✍️

Saturday, 19 November 2022

हे योगी तेरी किन भावों को मानूँ

 


हे योगी तेरी किन भावों को मानूँ  

हर रूपों में तुम ही समाये,

उन रूपों को पहचानूँ 

हे योगी .....

लघुता-जड़ता पशुता-हन्ता 

सब कर्मों के तुम ही नियंता 

उन अपराधों को जानूँ 

हे योगी .....

तुम से प्रेरित नील गगन है 

जिसमें उड़ता विहग सा मन है  

उन परवाजों को जानूँ 

हे योगी ......

दुर्गम पथ पर चलना सिखाते 

मुश्किल पल में लड़ना सिखाते

उन सदभावों को जानूँ 

हे योगी .....

भारती दास ✍️

Sunday, 13 November 2022

स्वर वर्ण का ज्ञान हो ( बाल कविता)

 अ - अनार के दाने होते लाल

आ - आम रसीले मीठे कमाल

इ -  इमली खट्टी होती है

ई  - ईट की भट्ठी जलती है

उ - उल्लू दिन को सोता है

ऊ - ऊन से स्वेटर बनता है

ऋ - ऋषि की पूजा करते हैं

 वो ईश्वर जैसे होते हैं.

ए - एक से गिनती होती है 

ऐ - ऐनक अच्छी लगती है 

ओ - ओस से धरती गीली है

औ - औषधि हमने पीली है

अं - अंगूर सभी को भाता है

अॅऺ - ऑख से ऑसू बहता है

अ: - प्रात: सूर्य निकलता है

     जग को रोशन करता है.

     स्वर वर्ण ही मात्रायें बनती

     शब्दों की रचनायें करती 

     कथ्य कई सारे कह देती

     भाव अनेकों उर में भरती.

     व्यंग्य नहीं ना शर्म हो

     अपनी भाषा पर गर्व हो 

     स्वर वर्ण का ज्ञान हो

     मात्रा की पहचान हो.

     भारती दास ✍️



Sunday, 6 November 2022

ब्रह्म बीज होती है विद्या

 ब्रह्म बीज होती है विद्या

जो स्वयं को ही बोधित करती है

अंतस की सुंदर जमीन पर

ज्ञान तरू बनकर फलती है.

हर कोई शिक्षा पाता है

कौशल निपुण बन जाता है

सिर ऊंचा करता समाज में

उत्थान में होड़ लगाता है.

लेकिन विद्या व्यवहार सिखाती

दंभ हरण कर देती है

मानस से तृष्णा हटाकर 

भाव करुण भर देती है.

शिक्षा रोजी रोटी देती

जिम्मेदारी का धर्म निभाती

सत्कर्मों को जोड़ती खुद से

विद्या हृदय को विकसित करती.

सर्वोत्तम है मानव जीवन

जो विद्या का मर्म सिखाते हैं 

शिक्षित हो मानव विद्या से

ज्ञान यही तो  कहते हैं.

 भारती दास ✍️