Sunday, 29 May 2022

हे सर्वस्व सुखद वर दाता

 हे सर्वस्व सुखद वर दाता

चिर आनंद जहां पर पाता

हरी भरी सी सुभग छांव में 

हंसते गाते सब सहज गांव में 

उस मनहर बरगद की छाया

जहां विद्व जन वेद को ध्याया

पतित पावन अति मनभावन 

मोक्ष प्रदायक रहते नारायण

जप तप स्तुति धर्म उपासना

योगी यति करते हैं कामना

ब्रह्म देव श्री हरि उमापति

कष्ट क्लेश हरते हैं दुर्मति

यमदेव हर्षित वर देते

आंचल में खुशियां भर देते

सत्यवान ने नव जीवन पाई

मुदित मगन सावित्री घर आई

करती प्रार्थना सभी सुहागिन 

वैसे ही सौभाग्य बढ़ती रहे हरदिन.

भारती दास ✍️









Wednesday, 18 May 2022

रहे सर्वथा उन्नत जन्मभूमि

 जिन गलियों में बचपन बीता

जिन शैशव की याद ने लूटा

उसी बालपन के आंगन में

हर्षित हो कर घूम आये हैं.

स्मृति में हर क्षण मुखरित है

दहलीज़ों दीवारों पर अंकित है

स्नेह डोर से बंधे थे सारे

पुलकित होकर झूम आये हैं.

नहीं थी चिंता फिकर नहीं था

भाई बहन संग मोद प्रखर था 

सुरभित संध्या के आंचल में

पुष्प तरू को चूम आये हैं.

न जाने कब हो फिर आना

इक दूजे से मिलना जुलना

रहे सर्वथा उन्नत जन्मभूमि

जहां स्वप्न हम बुन आये हैं.

भारती दास ✍️




Saturday, 7 May 2022

पोषित करती मां संस्कार

 दशानन के पिता ऋषि थे

पर मिला नहीं शिक्षण उदार

आसुरी वृत्तियों से संपन्न

माता थी उनकी बेशुमार.

दारा शिकोह को भाई ने मारा

कितना कलंकित था वो प्यार

शाहजहां को कैद किया था

ऐसा विकृत था परिवार.

वहीं दशरथनन्दन की मां ने

दी थी सुंदर श्रेष्ठ विचार

श्रीराम का सेवक बनकर

अपनाओ सदगुण आचार.

संघमित्रा और राहुल को पाला

यशोधरा ने देकर आधार

तप त्याग की महिमा सिखाई

बौद्ध धर्म का किया प्रसार.

ब्रह्म वादिनि थी मदालसा

पुत्रों को दी थी ब्रह्म का सार

सिर्फ कर्म स्थल ये जग है

विशुद्ध दिव्य तुम हो अवतार.

पिता हमेशा साधन देता

मां ही देती संपूर्ण आकार

सद आचरण प्रेम सिखाती

देती दंड तो करती दुलार.

सही दिशा उत्कृष्ट गुणों से

पोषित करती मां संस्कार

जैसा सांचा वैसा ही ढांचा 

जिस तरह गढता कुंभकार.

भारती दास ✍️