Saturday, 29 January 2022

काव्य सदा देता है सूकून

 

मनुष्य होते बहुआयामी

समरसता में ही जीते वे

तन-मन और भावों के बीच

सामंजस्य कई बनाते वे.

सिर्फ तर्क ही जो अपनाते

मस्तिष्क से प्रेरित होते वे

सुमन भाव के खिला नहीं पाते

सौंदर्य से वंचित होते वे.

संकीर्ण संकुचित होती दृष्टि

नहीं करते महसूस उल्लास

रुखी सुखी जीवन में न जाने

होते कितने गम विषाद.

पद प्रतिष्ठा धन का अर्जन

कुशल प्रवीण हो कर लेते हैं

पर वे जीवंत पुलकित न होते

राग विहीन जब उर होते हैं.

हृदय तरंगित कर देता है

काव्य सदा देता है सूकून

निज की झलक दिखा देता है

बनकर दर्पण गीत प्रसून.

भारती दास ✍️


















Wednesday, 19 January 2022

अमन चैन का खींचते दामन.

 


अहंकार बल दर्प कामना

निज हठ को ही सत्य मानना

मिथ्या ज्ञान द्वेष भावना

पर-मानव की निंदा करना.

ऐसी वृत्ति आसुरी होती

अनिष्ट आचरण जिसकी होती

दोष ही दोष दिखाई देती

कर्तव्य बोध न सुनाई देती.

गीता में कहते नारायण

बार-बार गिरते हैं नराधम

जो विध्वंस का बनते कारण

अमन चैन का खींचते दामन.

अंत सुनिश्चित हो जाता है

जो क्रूर शठ हिंसक होता है

ब्रम्ह स्वरूप जो शिक्षक होते

हठी उदंड को दंडित करते.

तुलसी दास जी कहते साईं

दृष्ट का संग ना हो रघुराई

नरक वास भले हो गोसाईं

साथ ना हो जो करते बुराई.

दृग-गगरी जिसकी खुल जाये

ईश-अवतारी वही बन जाये

दुर्बल की लाठी वो कहाये

दीन की साथी बन मुस्काये.

भारती दास ✍️


Wednesday, 12 January 2022

एक प्रखर युवा तपस्वी

 (जन्मदिन-विशेष)

12  जनवरी सन 1863 की सुबह भारत देश के लिए प्रेरक सुबह थी .इसी दिन स्वामी विवेकानंद जी के रूप में ईश्वरीय सन्देश का अवतरण हुआ था .श्री रामकृष्ण परमहंस जी ने इस दैवी अवतरण की अनुभूति अपने समाधिस्थ चेतना में कर ली थी. उन्होंने बड़े ही सहज भाव से कहा - ’’नरेन्द्र को देखते ही मैं जान गया कि यही है वो जिसे देवों ने चुना है ‘’.स्वामी जी का बचपन का नाम नरेन्द्र था जो बाद में विश्ववन्द्य स्वामी विवेकानंद के नाम से विख्यात हुए .

            स्वामी जी की चेतना ने सदा ही भारत के युवाओं के ह्रदय को झंकृत किया है .श्री अरविन्द ,नेताजी सुभाषचंद्र बोस ,महात्मा गांधी,जवाहरलाल नेहरु तथा आज के भी कई नेताओं और युवाओं के आदर्श रहे हैं .उनका सुन्दर मुख ,आकर्षक व्यक्तित्व ,सिंह के समान साहस,निर्भय भाव तथा उनकी आखों की गहराई हमेशा प्राणी –मात्र के लिए करुणाका सागर दिखाई देता है .अशिक्षित पददलित व गरीब मनुष्यों के प्रति अपार प्रेम व पीड़ा दोनों ही दर्शित हुए है .उनके स्वरों में सिंह की गर्जन है ,मधुर संगीत का प्रवाह है असीम प्रेम है दृढ विश्वास भी है.संभवतः इसीलिए उनका प्रत्येक शब्द युवाओं के लिए ही ध्वनित हुआ है .उनकी बातों का प्रभाव विद्युत् तरंगों की भांति असर करती है .

              जब कोई भी आदमी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए परिश्रम करता है परन्तु असफल होने पर टूट जाता है उसे हताशा घेर लेती है और वो आत्महत्या का निर्णय लेता है या निराशा से समझौता कर लेता है ,उस समय स्वामीजी की कही हुई उक्तियाँ एक नया राह दिखाती है .उनके व्याख्यान का अल्पांश ;-----



      ‘’ असफलता तो जीवन का सौन्दर्य है. यदि तुम हजार बार भी असफल हो तो एक बार फिर सफल होने का प्रयत्न करो .उनका ही जीवन सौन्दर्यमय है जिनके जीवन में निरंतर संघर्ष है .मानव जीवन का संग्राम ऐसा युद्ध है जिसे हथियार से नहीं जीता जा सकता .यह ध्रुव सत्य है की शक्ति ही जीवन है दुर्बलता जीवन की मृत्यु है .शक्ति ही अनंत सुख है ,चिरंतन है शाश्वत प्रवाह है.दुर्बल मन के व्यक्ति के लिए इस जगत में ही नहीं किसी भी लोक में जगह नहीं है .दुर्बलता शारीरिक व मानसिक रूप से तनाव का कारण है ,चेतना की मृत्यु है और  इसीलिए सभी प्रकार की गुलामी की ओर ले जाता है .ऐसे फौलादी विचार व मजबूत इरादों वाले लोगो की जरुरत है जिनकी वृति लोभ और दोष से परे हों.आत्म शक्ति से भरा व्यक्ति असफलता को धूल के समान झटककर फेंक देता है और निःस्वार्थ मन से अपने जीवन को सुखमय बना देता है.संवेदना का भाव प्रवाहित हो ,सबके के लिए दर्द हो, गरीब,मूर्ख और पददलित मनुष्यों के दुःख को अनुभव करो.संवेदना से ह्रदय का स्पंदन बढ़ जाये या मष्तिष्क चकराने लगे और ऐसा लगे की हम पागल हो रहे हैं तो इश्वर के चरणों में अपना ह्रदय खोल दो तभी शक्ति सहायता और उत्साह का वेग मिल जायेगा.मैं अपने जीवन का मूल मंत्र बताता हूँ की प्रयत्न करते रहो जव अन्धकार ही अन्धकार दिखायी दे तब भी प्रयत्न करते रहो तुम्हारा लक्ष्य मिल जायेगा.क्या तुम जानते हो की इस देह के भीतर कितनी उर्जा,कितनी शक्तियां, कितने प्रकार के बल छिपे पड़े हैं सिर्फ उसे बाहर निकलने की जरुरत है .उस शक्ति व आनंद का अपार सागर समाये हो फिर भी कहते हो की हम दुर्बल हैं .

”(व्यावहारिक जीवन में वेदान्त से)


उठो, जागो,और ध्येय प्राप्ति तक रुको नहीं.


ये दिव्य चेतना ने जो देह धारण की थी वह आज भले ही न हो पर उनकी प्रखर तेजस्वी स्वरुप देश की युवाओं को प्रेरित करते हैं और करते रहेंगे.

भारती दास ✍️

Wednesday, 5 January 2022

मानते नहीं बच्चे बड़ों की बात


प्रमुख समस्या बनी है आज

मानते नहीं बच्चे बड़ों की बात

ज्ञान उपदेश वे नहीं समझते

भय दबाव से वे नहीं डरते

मोबाइल के संग में उलझे रहते

पढ़ाई-लिखाई में सहज न होते

माता पिता को समय नहीं है

गहन अनेकों तथ्य यही है

आसान नहीं है पालन पोषण

बाल निर्माण और अनुशासन

संग में उनके रहना पड़ता

हर मुश्किल को सुनना पड़ता

व्यवहार आचरण गढना पड़ता

चित्त को संयम रखना पड़ता

बाल मन को समझाना पड़ता

धीरज धारण करना पड़ता

माता पिता के कार्य कलाप

करते अनुसरण वे हर इक बात

थोड़ी कड़ाई थोड़ा प्यार

ना हो उपेक्षित सा व्यवहार

भावनात्मक हो उनका पोषण

हो व्यक्तित्व की जड़ों का सिंचन

बुरे लत का हो ना शिकार

सही दिशा में  मिले संस्कार

जीवन बहार बन खिल जायेगा

आदर्श मिशाल वो बन जायेगा.

भारती दास ✍️