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रुके-रुके से थके-थके से
कदम जोश से बढ़ेंगे फिर से
कई विघ्न के शिला पड़े थे
समस्त तन-मन हंसेंगे फिर से.....
तड़प-तड़प कर सहम-सहम कर
रात-दिन यूं ही कट रहे थे
उम्मीद आश की लिये पड़े थे
वासंती पुष्पें खिलेंगे फिर से.....
इंद्रधनुष की बहुरंगों सी
विचरते चित्त में भाव कई सी
द्वन्द के साये में जी रहे थे
सुनहरे पल-क्षण मिलेंगे फिर से.....
मैं कृतज्ञ हूं हे परमेश्वर
धन्यवाद करती हूं ईश्वर
अंधकार पथ में बिखरे थे
छंद आनंद के लिखेंगे फिर से.....
भारती दास ✍️
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