Tuesday, 23 February 2021

विभा वसंत की छायी भू पर

 

विभा वसंत की छायी भू पर
कण-कण में मद प्यार भरा है
आलिंगन में भरने को आतुर
गगन भी बांहें पसार खड़ा है.
दमक रहा है इन्दु-आनन
सिमट-सिमट तन लजा रहा है
अलसायी अलकों में जैसे
उन्माद प्रेम का सजा रहा है.
पवन तोड़ कर बंधन सारा
मुख कलियों का चूम रहा है
कौन हीन है कौन श्रेष्ठ है
संग सभी के झूम रहा है.
भवन-भवन में मगन-मगन में
मदमस्त होकर घूम रहा है
भूमि-अंबर के ओर-छोर में
विचर कहीं भी खूब रहा है.
इच्छाओं का चंचल सिंधु
मन-तरंग में डूब रहा है
विवश-विकल-विविध पीड़ा से
सुख वसंत भी जूझ रहा है.
सुने यही थे कभी पढे थे
अनंग-रुप अवतार रहा है
क्यों कुसुमाकर बेबस होकर
सौम्य-रुप नकार रहा है.
भारती दास








 



Sunday, 14 February 2021

जय भगवती भारती

 

जय भगवती भारती
जगतवंदिनी पीड़ा हरती
पद्मवासिनी विद्या देती
मां सकल विश्व तारती
जय भगवती भारती....
रुप मनोहर अतिशय सुंदर
शुभता भर दे उर के अंदर
मां श्वेत वस्त्र धारती

जय भगवती भारती....
कर में वीणा राग सुना दे
ब्रह्माप्रिया अनुराग सिखा दे
मां करते हम आरती
जय भगवती भारती....

भारती दास


 

 

Tuesday, 2 February 2021

प्रकृति का मंगल वरदान


 

बीती रजनी दिनकर जागा
हंसती आई स्वर्णिम आभा
मंद पवन बहता मादक सा
भीनी-भीनी सुगंध सुमन का.
विटप पत्र से छनकर आती
माघ की मीठी धूप सुहाती
सौंदर्य सुधा से सुरभित धरती
सविता देव की मृदु अनुभूति.
व्याकुलता तृष्णा के मारे
देख न पाते नयन हमारे
मादक मोहक चारो ओर
बिखरा है आनंद विभोर.
अन्न जल वसुधा ही देती
रत्नगर्भा कहाती धरती
धरणी के दो हाथे बनकर
श्रम करते उत्साह से भरकर.
हरी-भरी फसलें इठलाती
लह-लह कर ये खेतें हंसती
है प्रकृति का मंगल वरदान
कण-कण में फैला अनुदान.
भारती दास