Friday, 29 March 2019

दृग-व्योम से क्यों बरसा है


कुछ तो बता ऐ मन
क्या है तेरी उलझन
दृग-व्योम से क्यों बरसा है
व्याकुल अश्रुकण, कुछ तो....
दूर अनंत है प्रीतम का घर
धीरे धीरे बढ़ तू चलकर
पथ में हो शूलों का वन
या दुर्गम हो क्षण, कुछ तो....
पल-पल मिटते पल-पल बनते
क्षण-क्षण मरते क्षण-क्षण जीते
कर ना तू क्रंदन,
कर सुंदर चिन्तन, कुछ तो....
जबतक है सांसों का उद्गम
जग अपना है सबसे बंधन
मांग ले अपनापन
स्वप्न में कर विचरण, कुछ तो....



Wednesday, 20 March 2019

आई होली धूम मचाता


तरुण तान गलियों में गाता
आई होली धूम मचाता
हाथ बढ़ाकर द्वेष भुलाता
प्रेम प्रीत का रंग लगाता.
भाई चारे का ढंग सिखाता
त्योहार हमें संदेश ये देता
समरसता पलकों में समाता
संताप हृदय का दूर  भगाता.
रक्ताभ अरूण धरती से कहता
अभिनव सुंदर रुप सुहाता
चिर मिलन की है विह्वलता
प्रणय की मदिरा दृग से बहता.
दिग-दिगंत में है मादकता
हर्ष उमंग अंगों में भरता
सुभग कामना दिल ये करता
रहे सुखद होली की शुभता.


Sunday, 3 March 2019

हे सर्वज्ञ हे गौरी-शंकर


करती हूँ मैं विनय निरंतर
निराकार निर्मल निर्गुण की
शुभता भर दें वेदना हर लें
पवित्र-भूमि की हर कण-कण की.
शुभ्र दीप्त अलोक की लौ से
रोशन कर दें उर का अंतर
रोग शोक परिताप मिटा दें
हर लें सब अभिशाप धरा पर.
हे सर्वज्ञ हे त्रिकालदर्शी
हे समर्थ देव हे गौरीशंकर
मंगल की अविरल वर्षा से
हर्षित कर दें धरती-अंबर.