Saturday, 30 June 2018

आये कौन दिशा से सजल घन


आये कौन दिशा से सजल घन
बरसाये तुम जल-कण , आये....
दिशा-दिशा से घूम के आये
स्वजन नेह सन्देश सुनाये
छलक उठा है लोचन
बरसाये तुम जल-कण , आये ....
तृप्त हुए वसुधा के अंतर
उर के मयूरा नाचे मन-भर
पुलक उठा चित्त उपवन
बरसाये तुम जल-कण , आये ....
पगडंडी खेतों के सूखे
पलक बिछाये रास्ता देखे
हर्ष उठा है कण-कण
बरसाये तुम जल-कण , आये ....
उजले-उजले बूंदे गिरते
तड़ित मेह में लुक-छिप करते
उमंग भरा है तन-मन
बरसाये तुम जल-कण , आये....      
   

Saturday, 9 June 2018

ग्रीष्म की छुट्टियाँ बीती सुनहरी [ बाल-कविता]


ग्रीष्म की छुट्टियाँ बीती सुनहरी
अब दृष्टि स्कूल पर ठहरी
हर्ष-विषाद है अंतस नगरी
अश्क बहाता दृग की गगरी .
तपा बदन जो चारों पहर था
बहा पवन पर स्वेद भरा था
अस्त-व्यस्त हो घूम रहा था
थी तपन-भरी वो दोपहरी.
देकर मीठी थपकी सुलाती
परियों वाली कथा सुनाती
दादी-नानी प्रेम जताती
थी हरदम वो स्नेहभरी.
गुजर गया दिन पलक-झपक
चिंता बनकर समायी मस्तक
पढनी होगी पोथी-पुस्तक
व्यथा यही है अब तो बड़ी.