Sunday, 31 December 2017

चिर वन्दित है ये नव प्रभात



नयी सी लगती आज ये ऊषा
नया-नया लगता है विहान
मन प्राण हुए हैं पुलकित
हर्षित है ये दिशा तमाम .
शब्द सभी निःशब्द हो गये
देख धरा का रूप सुहाना
अरुणोदय की अरुणिम आभा
बरसाता वैभव मनमाना .
कलियों का मुख था मूर्छित
स्वर्ण किरण से सीखा हँसना
मृदु अधरों पर मंद हास से
गुंजित है मधुकर का गाना .
नवमय वसुधा के आँगन में
नव शैशव है आलोड़ित
अभिनंदित नव संध्या में
नवल शशि है मनमोहित .
रच-रच रूप नवीन निरुपम
मलय प्रणय करते चुपचाप
कितना सुन्दर कितना मनोरम
है चिर वन्दित ये नव प्रभात .    

Sunday, 24 December 2017

जिनके लिए दृग बह निकला है



वक्त ने मुझपर किया भला है
दर्द पर मरहम लगा चला है
नये जोश नई उर्जा लेकर
विवश-विकल दिल फिर संभला है ....
मृदुल तरु की टहनी जैसी
स्वप्न सजाई थी मै वैसी
क्रूर काल के पंजों ने तो
नयनों से सपने तोड़ चला है .....
लम्हें मौन के धीर बंधाये
कुछ अनुभव ने हमें सिखाये
रस्म यही है , रीत यही है
आदि-अंत में जग ये ढला है .....
अब काली रजनी नहीं डराती
अश्क व्यथा पर नहीं बहाती
विधि ने चाहा वही हुआ है
नहीं किसी से कोई गिला है ....
दुःख-सुख के धागों को लपेटे
यादों को पल-पल में समेटे
पदचिन्ह अमिट होते हैं उनके  
जिनके लिये दृग बह निकला है ....  

भाईजी की तीसरी बरसी पर वेदनापूर्ण श्रद्धांजली      

Sunday, 17 December 2017

पूस की रात



कांपती हड्डियाँ ठिठुरते गात
है निर्दय सी ये पूस की रात ....
घुटनों में शीश झुका बैठे है
कातर स्वर से पुकार उठे है
न जाने कब होगी प्रभात , है निर्दय ....
लाचार बहुत मजबूर ये जान
संघर्ष में जीते हैं इन्सान
कुदरत देती है कठोर सी घात , है निर्दय ....
बर्फ सी बहती ठंढी बयार
आग की लपटें है अंगीकार
निष्प्रभ लोचन बंधे है हाथ , है निर्दय ....
सभ्यता के इस दंगल में
अंतर करना है मुश्किल में
होकर मौन जीते चुपचाप , है निर्दय ....