Friday, 30 September 2016

कंठ-कंठ से उठा जयघोष



इस्लामी हमलों से आहत
जब-तब होता रहता भारत
सरहद पर बसने वाले लोग
आतंक के साये में जीते लोग
चिंतन करते रहते अभागे
शायद भाग्य कभी न जागे
बेरंग गुजरती उनकी शाम
बोझिल होती रातें तमाम
झूठ-फरेब मक्कारी के स्वर
नित-दिन निकलते रहते खंजर
अपनी उदासी में सब चुप थे
मन में उठती टीसें जो चुभते
लोग विकल थे कराह रहे थे
अनगिनत आहें भर रहे थे
शोक से आतुर पथ का आघात
शहीद हुए थे जो जज्बात
बर्दास्त के बाहर हुए हालात
रोती बिलखती इंसानी गात
सैनिकों के उत्साह से डरकर
बिखरे दुश्मन हुए निरुत्तर
कंठ-कंठ से उठा जयघोष
आनंद मना रहा भर जोश
निखर उठा है सुखमय प्रभात
जगदंब पधारी शुभ दिन आज.         

Thursday, 22 September 2016

श्रद्धा की अभिव्यक्ति है



आश्विन मास के कृष्ण-पक्ष में
आरम्भ महालय का होता है
पितरों को नमन करने का
अनुपम अवसर ये होता है.
जिनकी कृपा से तन-मन मिलता
कृतज्ञ ये सारा जीवन होता
उनको तर्पण-अर्पण करते
अर्पित करते वंदन-पूजा.
रहता नहीं अवकाश किसी को
चिंतन-विचार कर पाने को
एक बार जो गए हैं जग से
कभी लौटे नहीं घर आने को.
पार्वण-श्राद्ध का मतलब होता
भावनाओं का बने आधार
भावी-पीढ़ी में श्रद्धा निहित हो
विकसित हो करुणा दुलार.
शास्त्रों में ऐसा कहते हैं
इस दिन पितर जमीं पर आते
इच्छित प्रेम और सुख को पाकर
ढेर आशीष हमें दे जाते.
स्वर्गस्थ आत्मा की तृप्ति
होती है स्नेह लुटाने में.
केवल भाव ग्रहण करते हैं
खुश होते वो शीश झुकाने में.
कहते हैं कुछ लोग यही
गया-सिद्धपुर-बदरीनाथ
करके अंतिम-श्राद्ध यहाँ
मुक्त हो जाते हैं उसके बाद.
पितृऋण एक ऐसा ऋण है
जिसे चूका नहीं सकते हम
सच्चा-श्राद्ध यही होगा
उन्हें नमन करे जबतक है ये तन.
श्रद्धा की अभिव्यक्ति है
पितृपक्ष का पार्वण-पर्व
उनका आशीर्वाद मिले
उनको भी हो हमपर गर्व.               
         

Tuesday, 13 September 2016

हिंदी इक अभियान बने



हिंदी में लिखना और पढना
आज की पीढ़ी भूल गयी
अवमूल्यन करके भाषा को
आगे बढ़ना सीख गयी.
अंग्रेजी की असर है छायी
वही इनकी विवशतायें हैं
भाव भरे सौन्दर्य ना जाने
जो हिंदी की क्षमतायें हैं.
होता नहीं है दर्द उन्हें कि
ये उनकी अपनी भाषा है
संस्कृति में वो रची बसी थी
क्यों आज बनी निराशा है.
सभ्यता के इस छोर पर
बेहतर इसका वजूद बने
भाषा की सामर्थ्य बोध से
इक सुन्दरतम स्वरुप बने.
कश्मीर की फिजाओं में महके
दक्षिण के जल-तरंग में डोले
एक दिवस का उत्सव ना हो
हर दिन मुखर-प्रखर हो बोले.
है यही कामना अपनी
विश्व गांव की पहचान बने
देश के उन विकास पथ पर
एक अनुपम सा अभियान बने.