Tuesday, 22 March 2016

होली आई



भीनी-भीनी सी लेकर सुगंध
आती गर्मी जाता है बसंत
फूली सरसों पीली-पीली
श्रृंगार धरा की नयी नवेली
सजी-धजी दुल्हन सी धरती
आनंद में डूबी सारी प्रकृति
मनोभावों का मधुर विलास
मोहक-मादक-नशीली मास
छूकर समीर उर करता शीतल
नयी रागिनी बजती हरपल
भावनाओं को करता सराबोर
उमंग के रंग छाता निशि-भोर
फाल्गुन उत्सव लेकर आता
अवसादों को मिटाने आता
दिल से दिल को जोड़ने आता
अंतर्मन को भिगोने आता
बूढों में यौवन भर देने
युवाओं में बचपन ले आने
जोश-उत्साह-उल्लास जगाने
आई होली तन-मन हरसाने.    
भारती दास ✍️    

Sunday, 6 March 2016

हे भूतनाथ हे कैलाशी



रुक से गए हैं वक्त के धारे
संकट क्यों बन जाते सारे
कष्ट-पीड़ा तो संग में चलती
तकलीफें हर-पल ही बनती
विकलतायें उर में बस जाती
विफलतायें प्रारब्ध बन जाती
वेदना बन जाती है अपार
कुहासे दर्द के होते हजार
तब भी गीत तेरा ही गाती
हे प्रभु तुमसे नेह लगाती
चक्षु-नीर भी तुम्हे चढ़ाती
आश की दीप मैं सदा जलाती
हे भूतनाथ हे कैलाशी
हे दीन-दुखी के सुखराशी
तुम अगम अगोचर हो शंभो
इक बार निहारो नाथ प्रभो
बाधाओं के चक्रव्यूह को
पीड़ाओं के उस समूह को
निज दोनों हाथों को बढाकर
दुर्भाग्य हरो हे भोले कृपाकर.     
भारती दास ✍️