पौराणिक कथा आख्यान
देते सदा ही सुन्दर ज्ञान
क्या कहते हैं शास्त्र पुराण
क्यों विश्वगुरु है भारत का ज्ञान
गया में क्यों होता पिंडदान
क्यों है इसका महत्व विधान
पितरों को यहाँ मिलती मुक्ति
हर जन की यही है अभिव्यक्ति
गया नाम का एक असुर था
भक्तों में वो श्रेष्ठ प्रवर था
उसमें केवल भक्ति निहित था
वो जिद्दी और हठी बहुत था
जप-तप से था उसका लगाव
विष्णु से था सख्य का भाव
दैत्यगुरु ने बहुत समझाया
दैत्यों का नहीं ये मार्ग बताया
असुर सदा करते उत्पात
नहीं करते भक्ति की बात
गयासुर ने बात न मानी
भक्ति को ही जीवन मानी
भक्ति ऐसी कि स्वर्ग हिला था
देवों के तो गर्व हिला था
सारे देव दुखी व्यथित थे
दैत्यों से भयभीत अधिक थे
इंद्र ने की षड़यंत्र की रचना
देव गुरु से कर के मंत्रणा
सृष्टि का कल्याण सुखद हो
इसके लिए एक विशद यज्ञ हो
इस यज्ञ की है यही विशेषता
ये धरती पर नहीं हो सकता
देवगुरु ने किया निवेदन
हे गयासुर तुम दो अपना तन
तुममें भरा है धैर्य प्रचुर
भक्त श्रेष्ठ तुम हो असुर
मेरी विनती करो स्वीकार
तुम करो तन का विस्तार
हे देवराज - हे देवगुरु
आप करे बस यज्ञ शुरू
सब जीवों का हो कल्याण
शीघ्र करें यज्ञ का निर्माण
गयासुर ने तन फैलाया
विस्तृत कर विस्तार बनाया
यज्ञ-ध्वनि लगा
गूंजने
यज्ञाग्नि से तन लगा टूटने
भीषण पीड़ा से जला शरीर
दीर्घ काल तक चला ये पीर
वो शरीर जो देव निमित था
उसपर भक्त की छाप अमिट था
यज्ञ समाप्त होने को आया
वो भी मृत होने को आया
पूरी हुई देवों की इच्छा
गयासुर की भक्ति परीक्षा
गयासुर--- देवों ने कहा
वर मांगों तुम मनचाहा
हे नाथ मुझे मुक्ति मिले
आपकी बस भक्ति मिले
हम पर कर दे इतनी कृपा
जहाँ तक है ये देह मेरा
वहां सदा हो श्रद्धा भक्ति
पितरों को मिले हरदम मुक्ति
देवों ने कहा –तुम हो महान
पितर देव गाये
गुणगान
तेरे देह वाले स्थान
कहलायेंगे गया का धाम
युगों युगों तक होगा सिद्ध
गया नाम से होगा प्रसिद्द
पिंड का दान करे जो पुत्र
उनके पितर होंगे ही मुक्त
अपने अराध्य में होकर लीन
भक्त और भक्ति हुई विलीन .
भारती दास ✍️