Friday 30 December 2022

वक्त हूं मैं बदल जाता हूं

 


हर कर्तव्य निभा जाता हूं

वक्त हूं मैं बदल जाता हूं....

देखता हूं सितारों का मेला

चांद और सूरज का सब खेला

मुदित स्नेह हर्षा जाता हूं

वक्त हूं मैं बदल जाता हूं....

तिमिर जाल का घोर अंधेरा

हो चाहे मादक सुख धारा

सब कुछ उर में समा जाता हूं

वक्त हूं मैं बदल जाता हूं....

आह रात की रूदन दिवस की

मही निरीह सी दुःखी मलीन सी

नेत्र नीर मैं बहा जाता हूं

वक्त हूं मैं बदल जाता हूं....

भारती दास ✍️


Saturday 24 December 2022

वधू वसुधा सुख पाने को है

 

मेले जैसा ही है संसार
जहां साधनों का लगा भंडार
विषय भोग से सजा बाजार
लगे भागदौड़ में लोग हजार.
परम पिता से बिछड़ रहे हैं
लोभ मोह से संवर रहे हैं
शील संयम के बिखर रहे हैं
क्रोध की ज्वाला प्रखर रहे हैं.
प्राण की बाती बुझ रहे हैं
सत्य की ज्योति जूझ रहे हैं
उत्कर्ष हर्ष की डूब रहे हैं
संतप्त प्रचंड भी खूब रहे है.
रात की कालिमा जा रही है
प्रात की लालिमा छा रही है
मौन मुकुल खिल जाने को है
वधू वसुधा सुख पाने को है.
भारती दास ✍️

Saturday 3 December 2022

गीता वचन शुभ ज्ञान है

 पापमोचन -तापशोषण 

गीता वचन शुभ ज्ञान है,

कृष्ण की वाणी सुहानी से

सुखद मन प्राण है.

जन्म जीवन का जहां है

मौत निश्चित है वहां 

मत शोक कर हे पार्थ तुम

यही सत्य है हरदम यहां.

जो आज तेरा है यहां

वो दूसरे का होगा कल

क्या खोया है तुमने यहां पर 

जिसके लिए तेरा मन विकल.

जो होना है होकर रहेगा 

तू व्यर्थ में चिंता न कर 

कर्म ही कर्त्तव्य केवल 

फल जो विधाता दे मगर.

न अतीत में न भविष्य में

जीवन अभी इसी पल में है 

परिणाम की न कर आकांक्षा 

कर्म से ही पथ सफल है. 

आस्था न हो दूषित 

ये ग्रंथ कर्म प्रधान है

दुर्दशा न हो कभी

उस वचन का जो महान है.

भारती दास ✍️



Saturday 26 November 2022

भीष्म की मन की व्यथा

 


हजारों साल से भी पुरानी

रणगाथा की अमिट कहानी

शांतनु नाम के राजा एक

थे कर्मठ उदार-विवेक.

गंगा के सौंदर्य के आगे 

झुक गये वे वीर अभागे

करनी थी शादी की बात

पर गंगा थी शर्त के साथ.

मुनि वशिष्ठ ने शाप दिया था

अष्ट वसु ने जन्म लिया था

देवतुल्य वसु थे अनेक

उनमें से थे देवव्रत एक.

कर्मनिष्ठ वे धर्मवीर थे

प्रशस्त पथ पर बढे वीर थे

अटल प्रतिज्ञा कर बैठे थे

विषम भार वो ले बैठे थे.

भीषण प्रण को लिए खड़े

नाम में उनके “भीष्म” जुड़े 

भीष्मपितामह वो कहलाये

कौरव-पांडव वंश दो आये.

वंश बढा और बढ़ी थी शक्ति

पर दोनों में नहीं थी मैत्री

शत्रु सा था उनमें व्यवहार

इक-दूजे में नहीं था प्यार.

सत्ता कहती कौन सबल है

प्रजा चाहती कौन सुबल है

किसका पथ रहा है उज्जवल

कौन बनेगा अगला संबल.

राज्य-सिंहासन ही वो जड़ था

जिसमें मिटा सब वीर अमर था

अपमान-मान ने की परिहास

छीन ली जीवन की हर आस.

छल-कपट से जीत हो जिसकी

पुण्य-प्रताप मिटे जीवन की

बस स्वाभिमान यही था अंतिम

युद्ध ही एक परिणाम था अंतिम.

महाभारत की भीषण रण में

मिट गये वीर अनेक ही क्षण में

धरती हुई खून से लाल

बिछड़ गये माता से लाल.

शर-शय्या पर भीष्म पड़े थे

नेत्र से उनके अश्क झड़े थे

आँखों में जो स्वप्न भरे थे

बिखर-बिखर कर कहीं पड़े थे.

बैर द्वेष इर्ष्या अपमान 

मिटा दिए वंशज महान

कुरुक्षेत्र का वो बलिदान

देती सीख हमें शुभ ज्ञान.

भारती दास✍️

Saturday 19 November 2022

हे योगी तेरी किन भावों को मानूँ

 


हे योगी तेरी किन भावों को मानूँ  

हर रूपों में तुम ही समाये,

उन रूपों को पहचानूँ 

हे योगी .....

लघुता-जड़ता पशुता-हन्ता 

सब कर्मों के तुम ही नियंता 

उन अपराधों को जानूँ 

हे योगी .....

तुम से प्रेरित नील गगन है 

जिसमें उड़ता विहग सा मन है  

उन परवाजों को जानूँ 

हे योगी ......

दुर्गम पथ पर चलना सिखाते 

मुश्किल पल में लड़ना सिखाते

उन सदभावों को जानूँ 

हे योगी .....

भारती दास ✍️

Sunday 13 November 2022

स्वर वर्ण का ज्ञान हो ( बाल कविता)

 अ - अनार के दाने होते लाल

आ - आम रसीले मीठे कमाल

इ -  इमली खट्टी होती है

ई  - ईट की भट्ठी जलती है

उ - उल्लू दिन को सोता है

ऊ - ऊन से स्वेटर बनता है

ऋ - ऋषि की पूजा करते हैं

 वो ईश्वर जैसे होते हैं.

ए - एक से गिनती होती है 

ऐ - ऐनक अच्छी लगती है 

ओ - ओस से धरती गीली है

औ - औषधि हमने पीली है

अं - अंगूर सभी को भाता है

अॅऺ - ऑख से ऑसू बहता है

अ: - प्रात: सूर्य निकलता है

     जग को रोशन करता है.

     स्वर वर्ण ही मात्रायें बनती

     शब्दों की रचनायें करती 

     कथ्य कई सारे कह देती

     भाव अनेकों उर में भरती.

     व्यंग्य नहीं ना शर्म हो

     अपनी भाषा पर गर्व हो 

     स्वर वर्ण का ज्ञान हो

     मात्रा की पहचान हो.

     भारती दास ✍️



Sunday 6 November 2022

ब्रह्म बीज होती है विद्या

 ब्रह्म बीज होती है विद्या

जो स्वयं को ही बोधित करती है

अंतस की सुंदर जमीन पर

ज्ञान तरू बनकर फलती है.

हर कोई शिक्षा पाता है

कौशल निपुण बन जाता है

सिर ऊंचा करता समाज में

उत्थान में होड़ लगाता है.

लेकिन विद्या व्यवहार सिखाती

दंभ हरण कर देती है

मानस से तृष्णा हटाकर 

भाव करुण भर देती है.

शिक्षा रोजी रोटी देती

जिम्मेदारी का धर्म निभाती

सत्कर्मों को जोड़ती खुद से

विद्या हृदय को विकसित करती.

सर्वोत्तम है मानव जीवन

जो विद्या का मर्म सिखाते हैं 

शिक्षित हो मानव विद्या से

ज्ञान यही तो  कहते हैं.

 भारती दास ✍️

Sunday 23 October 2022

जल गई दीपों की अवली

 जल गई दीपों की अवली

सज गई है द्वार और देहली

शक्ति का संचार कर गई

दीपमालिका मंगल कर गई

उर मधुर स्पर्श कर गई

निविड़ निशा में उमंग भर गई.

आभा धरा की दमक रही

सुख मोद से यूं चमक रही

हृदय-हृदय से पुलक रही

स्मित अधर पर खनक रही.

दिवस-श्रम का भार उठाये

दृग-दृग में अनुराग सजाये

दुर्गुण जलकर सद्गुण आयें

रमा-नारायण घर-घर आयें.

भारती दास ✍️

दीप-पर्व की अनंत शुभकामनाएं


Friday 14 October 2022

पछताते हैं लोग भी अक्सर

 

एक विशाल पेड़ था हरा भरा
था छाया में जिसके ऊंट खड़ा
पथिक बैठते छांव में थककर
खग कुल गीत गाते थे सुखकर
तभी प्रलय बन आया तूफान
गिर पड़ा वृक्ष नीचे धड़ाम
नीड़ से बिखरे अंडे बच्चे
मर गये ऊंट भी हट्ठे कट्ठे
भूखे सियार ने देखा भोजन
हुआं हुआं कर हुआ प्रसन्न
अपने भाग्य को खूब सराहा
ईश्वर के प्रति प्रेम निबाहा
एक मेंढक भी कहीं से निकला
सियार का मन तो बल्लियों उछला
सोचा पहले मेढक को खाऊं
फिर सारा भोजन कर जाऊं
पर कूद गया मेढक जल्दी में
सियार समाया दलदल मिट्टी में
कुछ ही पल में सब घटित हुआ
विधि की लीला विदित हुआ
सियार ने जो भी था पाया
अधिक लोभ में सभी गंवाया
लालच के चक्कर में पड़कर
पछताते हैं लोग भी अक्सर.
भारती दास ✍️

Saturday 8 October 2022

सुखद मनोरम आइ कोजगरा

 

सुखद मनोरम आइ कोजगरा
बरसै गगन सं पीयूषक धारा....
राधा रमण संग रासक क्रीड़ा
मधुर मखान संग पानक बीड़ा
सुखद मनोरम आइ कोजगरा....
मुग्ध नयन सं झरै अछि नीरा
पुलकित अछि मन प्राण शरीरा
सुखद मनोरम आइ कोजगरा....
शरद विभावरी हर्षित चहुं ओरा
माधव मुरली मगन चित्त चोरा
सुखद मनोरम आइ कोजगरा....
मुदित बहै अछि शीतल समीरा
पूरत मनोरथ मेटत सब पीड़ा
सुखद मनोरम आइ कोजगरा....
भारती दास ✍️
(मैथिली गीत)
शरद पूर्णिमा के हार्दिक शुभकामना

Saturday 1 October 2022

बाल कविता

 बाल कविता

 गांधी जी के तीन बंदर

 कहते सबसे बातें सुंदर

 सच से कभी भी डरो नहीं

 कड़वी बातें करो नहीं

 चीजें गंदी देखो नहीं

 कभी किसी से लड़ो नहीं 

 तुम नन्हे-मुन्ने न्यारे हो 

 गांधी जी के प्यारे हो

 भारत मां के दुलारे हो

 तुम ही उगते सितारे हो.

 शास्त्री जी के थे अरमान

  बढे देश की हरदम आन

  विश्व गांव में हो पहचान

  शिक्षा सभ्यता बने महान

  जहां पवित्र है गीता पुराण

  कर्म ही पूजा कर्म ही ज्ञान

  जहां लुटाते सैनिक जान

  गर्व  हमें है उनपर शान

  वो भूमि है पावन धाम

  जय जवान जय किसान.

  गांधी-शास्त्री जयंती की 

  हार्दिक शुभकामनाएं

भारती दास ✍️






Monday 26 September 2022

देवी प्रार्थना


वर दय हरू कष्ट हमर मैया 

बड़ देर सं आश लगेने छी

अवलंब अहीं छी व्यथित मनके

विश्वासक दीप जरेने छी

वर दय हरू.....

छी मूढ मति कोना ध्यान करू

हे दुर्गा अहां कल्याण करु

अछि पथ दुर्गम हे जगत जननी

अपराध कतेको कयने छी

वर दय हरू.....

हम मंत्र तंत्र नै जानै छी

अनुदान स्नेह के मांगै छी

हे शैल सुता स्वीकार करू

पद में मद अर्पण कयने छी

वर दय हर......

दुर्गा पूजा के हार्दिक शुभकामनाएं


(मैंथिली गीत)

भारती दास ✍️


Saturday 10 September 2022

सादर सदैव पूजनीय होते

 भावनाओं के अनुकूल ही

निर्माण व्यक्तित्व का होता है

ना हो उपेक्षा ना हो अपमान

सहज स्वभाव जिनका होता है.

सृष्टि के हर एक कण में

रहस्य यही तो समाया है

मोह-युक्त जर्जर अवसाद

नित्य ही मन को भरमाया है.

अपनी गोद में हमें बिठाकर

कभी जिन्होंने दुलारा था

जिनकी हर विश्वास ने हमको

हर मुश्किल से उबारा था.

मूक करूणा का भाव लिए वो

हमें निहारते रहते हैं

पावन श्रद्धा प्रेम के लिए वो

पार्वण पर्व में आते हैं.

उनको तर्पण अर्पण करके

अटूट आस्था का देते आधार 

स्मरण नमन करके पूर्वज का

आशीष प्राप्त करते हैं अपार.

सादर सदैव वो पूजनीय होते 

रक्षक बनकर करते उपकार

जो स्वर्गस्थ हुए महात्मा

वो ईश रूप होते साकार.

भारती दास ✍️






Tuesday 30 August 2022

तुम ही मंगल मोद हो

 दृग बिछाये सारा जग ये

राह तेरी निहारते

थाल पूजा की सजाये

अपना तन-मन वारते.

कर मनोहर पुष्प माला

भक्त तुझको अराधते

दूर कर बाधा विधाता

मंत्र जप तप साधते.

तुम अगोचर हे महोदर

तुम ही मंगल मोद हो

ज्ञान पुण्य विवेक गौरव

तुम ही वैदिक बोध हो.

युगल पद में हे गजानन

सर झुका वर मांगते

हर विपत्ति दे सुबुद्धि

नाद स्वर से पुकारते.

भारती दास✍️


Thursday 25 August 2022

जीवन का सुख सारा बचपन

 

जीवन का सुख सारा बचपन
प्यारा-न्यारा-दुलारा बचपन
नहीं था चिंता कोई फिकर-गम
अल्हड़पन में डूबा निडर मन
मां की ममता पिता का डर
जिद्दी बन हठ करता मगर
दादी मां की कहानी सुनकर
दौड़ते गलियों में सब दिनभर
खो-खो कबड्डी छुपम छुपाई
छपछप कर बारिश की नहाई
दिन वो सुनहरे भूल न पाई
पल छिन वैसा कभी न आई
मन मचलता बचपन जैसा
वक्त नहीं है पुराने जैसा
हंसी ठिठोली करते रहते
हर दिन उत्सव जैसे होते
काश वही क्षण होता बचपन का
दर्द न होता पीड़ा गम का.
भारती दास ✍️

Thursday 18 August 2022

तुम ज्योतिर्मय तुम करुणाकर

 


हे वंशीधर यदुकुल सुन्दर 

तुम ज्योतिर्मय तुम करुणाकर...

लेकर अपने भाव की माला 

वंदन करती हूँ नन्द-लाला 

अहंकार सब लो मेरा हर 

तुम ज्योतिर्मय तुम करुणाकर... 

अब शेष रहे न दर्द भरे क्षण 

दूर करो सारे संकट गम 

पथ पर शूल बिछा है निरंतर 

तुम ज्योतिर्मय तुम करुणा कर... 

श्रेष्ठ नहीं है साधना मेरी 

अनुकम्पा कब होगी तेरी 

चिंता मिटाओ नव बल दो भर

तुम ज्योतिर्मय तुम करुणाकर... 

मै निहाल हो जाऊं नटवर

देखूं तेरा छवि चिर सुन्दर

पूर्ण करो अभिलाषा गिरधर 

तुम ज्योतिर्मय तुम करुणाकर...

भारती दास✍️

Saturday 13 August 2022

विश्व में बस एक है

 

जड़ता-कटुता-हिंसा ने
सभ्यता को पंक बना दिया
मिट्टी के पुतले बनकर
मानवता को मुरझा दिया.
संस्कृति पर जो हमारी
द्वेषवश हंसते रहे
राष्ट्र की कीर्ति संपदा को
पद तले मलते रहे.
तोड़ पाये जो प्रथा को
वो विद्वान मिटता जा रहा
मानव ही मानव का
व्यवधान बनता जा रहा.
मधुरता का बोध ही
जाने कहाँ पर खो गया
ऐसा प्रतीत होता है
जन यांत्रिक सा हो गया.
छूट कर पीछे गया है
भावनाओं का प्यारा देश
अब सिर्फ केवल बचा है
कोलाहल और बैर-द्वेष.
आसूओं में दर्द की
बहती रही तश्वीर है
इस देश की हे विधाता
कैसी ये तक़दीर है.
निर्दयता के पावस घन पर
कम्पित मन रोता बेजार
क्रूर वक्त की पृष्ठ पर
है क्लेश-गम अंकित हजार.
हर दुख-विषाद भूलकर
मगन प्रसन्न सब हो रहा
अमृत भरा सुखद ये क्षण
तृप्ति प्रदान कर रहा.
सजा तिरंगा हर घर प्यारा
है रोम-रोम उल्लास भरा
भूलोक का गौरव मनोहर
बन आया है खास बड़ा.
असीम अखंड आत्मभाव
जिस देश में अनंत है
वही ऋषि सा भूमि अपना
विश्व में बस एक है. 
भारती दास ✍️

Saturday 6 August 2022

दोस्त वही जो ढाल बने

 उर से उर की तार मिले

दुख-सुख में सौ बार मिले 

दोस्त वही जो ढाल बने

दुश्मन के लिए तलवार बने.

ना धर्म लड़े ना कर्म लड़े

दिन-रात हो जिससे मन ये जुड़े

हो पावस ग्रीष्म हेमंत ऋतु

लेकर हाथ हो साथ खड़े.

जब चित्त हो विकल अधीर बड़े

जो कहे कि हम हैं पास तेरे

दशा कोई हो इस जीवन का

संग में हर अवसाद हरे.

भारती दास ✍️


Sunday 31 July 2022

है श्रावणी का त्योहार

 चूड़ी बिंदी मेंहदी काजल

हंसता मुखड़ा उड़ता आंचल 

छन-छन धुन में बजती पायल

उदगार भरा है अपार

है श्रावणी का त्योहार....

हरीतीमा हर्षित हरियाली

सजे हैं झूले डाली-डाली

लड़ी हो जैसे हीरों वाली

नभ छलकाता रस धार

है श्रावणी का त्योहार....

आनंद अखंड रहे हरपल ही

मुख अरविंद सजे हरपल ही

जन अनुरागी बने हरपल ही

कर शैल सुता उपकार

है श्रावणी का त्योहार....

भारती दास✍️






Thursday 21 July 2022

पावन है भोलेनाथ का सावन

 आत्मस्थित जो महादेव हैं

वही अघोर हैं वही अभेद हैं

वही पवित्र हैं वही हैं पावन

वही संहारक वही हैं जीवन

कहीं हर्ष है कहीं शोक है

विषम दशा में भूमि लोक है

गरल-पान कभी किये सदाशिव

थे द्वेष दंभ सब हरे महा शिव

जप-तप पूजा और अभिषेक

सदा ही करते भक्त प्रत्येक

सर्वत्र व्याप्त है जिनकी शक्ति

शव से बनते जो शिव की उक्ति

रूद्र का अंश है हर जीवात्मा

निराकार निर्लिप्त भावना

करते हैं नर-नारी साधना

अभय बनाते शिव-अराधना

मंजू मनोरथ पूर्ण हो सारे

चिन्मय आस्था रहे हमारे

पावन है भोलेनाथ का सावन

मंगलमय हो हर घर प्रांगण.

भारती दास ✍️


Tuesday 12 July 2022

गुरु –पूर्णिमा- पूर्णता के प्रतीक

 

भारत को जगत-गुरु की उपमा दी जाती है क्योंकि उसने विश्व मानवता का न केवल मार्गदर्शन किया बल्कि अनगिनत आदर्शों को जीवन में उतारकर प्रेरणा का श्रोत बना .गुरु -शिष्य के परस्पर महान संबंधों एवं समर्पण-भाव द्वारा ज्ञान –प्राप्ति का विवरण ,शास्त्रों में स्थान-स्थान पर मिलता है .भगवान श्रीराम गुरु विश्वामित्र के हर आदेश का पालन प्राण से बढ़कर करते थे .परम आनंद भगवान श्रीकृष्ण भी  गुरु संदीपनी के आश्रम में हर छोटे –छोटे कार्य बड़े ही उत्साह के साथ करते थे . गुरु –भक्त आरुणि, गुरु के आदेश पर खुद को पूर्ण समर्पित कर दिये थे.ऐसे ही कई गाथाऐं हमें अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते है .गुरु को मानवी चेतना का मर्मज्ञ माना गया है. उनका प्रयास यही होता है कि डांट से पुचकार से तथा अन्यतर उपाय के द्वारा भी अपने शिष्य को हर दुर्गुण से निर्मल बना दे.प्राचीनकाल में गुरु के सानिध्य से शिष्यों को कठिनाइयों से संघर्ष करने की अपार  शक्ति होती थी.वार्तालाप-विश्लेषण के द्वारा उनमे चिंतन की प्रवृति जगती थी .साधना-स्वाध्याय से आत्मज्ञान की अनुभूति होती थी .वे ज्ञान,गुण व शक्ति के पुंज होकर निकलते थे .इसीलिए उनको भौतिक सुखों की नहीं कर्तव्य व सेवा की समझ की विकसित होती थी . गुरु-शिष्य का संबंध आध्यात्मिक स्तर का होता था .शिष्य के संबंध में उपनिषद्कार कहते हैं कि---हाथ में समिधा लेकर शिष्य गुरु के पास क्यों जाते थे .इसीलिए कि समिधा आग पकड़ती है .गुरु के ज्ञान भी जीती-जागती ज्वाला ही है .ज्ञान के अग्नि में तपकर वह भी ज्ञान-प्रकाश फैलानेवाले सिद्ध गुरु बने.गुरु जो कहे बिना कोई तर्क किये उस कार्य को करना साधना कहलाता है .गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं ----


"गुरु के वचन प्रतीत न जेहि
सपनेहूं सुख सुलभ न तेहि"

गुरु के निर्देशों का पालन करने वालों को,जी भरके गुरु का अनुदान मिलता है .श्रद्धा की  परिपक्वता, समर्पण की पूर्णता शिष्य में अनंत संभावनाओं के द्वार खोल देते हैं. संत कवीरजी ने कहा है -
"गुरु गोविन्द दोउ खड़े
   काके लागूं पाय
  बलिहारी गुरु आपनो
  गोविन्द दीयो बताय"

गुरु के द्वारा ही भगवान के अनंत रूप का दर्शन होता है .ईश्वर की कृपा जीवन में चरितार्थ होती है .यहीं से आरम्भ होता है “तमसो मा ज्योतिर्गमय”. यही महामंत्र सक्रिय व साकार रूप लेकर हमारे जीवन को सुन्दर और सुखद बनाते हैं .आज वैदिकयुग के सारे संस्कार में दोष आ गए हैं .गुरु शिष्य दोनों के ही आचरण पूर्णतः बदल गये हैं .शिक्षक अध्ययन को विक्रेता बना कर बेच रहे हैं ,छात्र उसे मुहमांगी मूल्य पर खरीद रहे हैं.आज शिक्षा पूर्ण-पेशा बन चुका है.एक दुसरे के प्रति न मान है न सम्मान है न शुद्ध आचरण है .ये छात्र जो जिज्ञासु हो कर शिक्षक के चरणों में नत हो सकते थे, ज्ञान-पिपासु हो कर उनके संवेदना में बह सकते थे वो पूरी परम्परा ख़त्म हो रही है. आज फिर से वैदिकयुग की पुनरावृति की आवश्यकता है .समाज के अविष्कारक शिक्षक ही होते हैं जो छात्रों में नैतिक,सामाजिक एवं अध्यात्मिक मूल्य को घोलते हैं जिससे वो जीवन जीने की कला अनिवार्य रूप से सीखते हैं. ये पावन दिवस तम को हरने वाली गुरु-पूर्णिमा
सबके जीवन में शुभता भरे. क्यों न आज से ही स्वनिर्माण की शुरुआत करें.


          आदर्श गुरु ----

गुरु वही जो तम को हरते

श्रेष्ठ सदा भगवन से होते

                  गहन-मनन चिंतन ही करते            

                   ज्ञान-पुंज वो हरदम होते.

        आदर्श शिष्य --------

जो सदा जिज्ञासु होते

ज्ञान-पिपाशु होकर पीते

गुरु का जो करते सम्मान

 कहलाते वो शिष्य महान.

भारती दास ✍️

Thursday 30 June 2022

वो भगवान के रूप हैं केवल

 आभार व्यक्त करते हैं उनको

जिनके सेवा से मिलता जीवन

रात-दिन और आठों पहर

जो करते हैं कठिन परिश्रम.

स्पंदन भरने को उर में

निज अस्तित्व को भूल जाते हैं

धर्म है जिनका सांसे बचाना

यमराज के आगे अड़ जाते हैं.

वो भगवान के रूप हैं केवल

भाग्य नहीं बदल सकते हैं 

कभी कभी ईश्वर की मर्जी

उन्हें विफल करते रहते हैं. 

मेहनत की उनकी कद्र न करते

लोग उन्हें पहुंचाते ठेस

भावनाओं को आहत करते

भरते उर में पीड़ा व क्लेश.

शालीनता ये दर्शाती है

चिकित्सक भी होते इंसान

संवेदनशील वो रहते हरदम

कर्तव्यनिष्ठ होते सुबहो शाम.

भारती दास ✍️






Friday 17 June 2022

उर्मिले जनु करू वियोग

उर्मिले जनु करू वियोग
भाग्य सं हमरा भेटल अछि
सेवा के संयोग, उर्मिले जनु....
राज कुमारी जनक दुलारी
तेजल राजसी योग
नाथ शंभु मां आदि भवानी सं
कयलहुं अनुरोध
रघुकुल भानु के संग जायब
अछि नयन में मोद, उर्मिले जनु....
अहीं हमर छी प्रणय के देवी
अहीं सं अछि मृदु नेह
चित्र बनि के दृग बसल छी
अहीं पूजित उर गेह
अहीं प्रिय छी मन के मोहिनी
अहीं सुखद छी बोध, उर्मिले जनु....
हे कल्याणी शौर्य दायिनी
भाव वंदिनी छी
अहीं विनोदिनी अहीं सुहासिनी
पद्म लोचनी छी
हे राजनंदिनी पुण्य भागिनी
छोडू दुख और क्षोभ, उर्मिले जनु....
आर्य पुत्र हम छी बड़भागिनी
पथ अनुगामिनी छी
जाऊ कंटक बाट देखब
चिरकाल संगिनी छी
धरा साक्षिणी सकल देव छथि
नहि उमड़त दृग नोर...
उर्मिले जनु करू वियोग.
भारती दास ✍️
(मैथिली गीत)








Sunday 12 June 2022

बाल-कविता

 

बाय-बाय नानी बाय-बाय दादी
ख़त्म हुयी सारी आजादी...
इतनी सुन्दर इतनी प्यारी
बीत गयी छुट्टी मनोहारी
खुल़े हैं स्कूल ख़ुशी है आधी
खत्म हुयी सारी आजादी ...
तेज धूप में दौड़ लगाते
मीठे आम रसीले खाते
अब बस्तों ने नींद उड़ा दी
ख़त्म हुयी सारी आजादी...
बहुत हुयी मौजे मनमानी
अनगिनत मस्ती शैतानी
अब उमंग पढने की जागी
ख़त्म हुयी सारी आजादी ...     

भारती दास ✍️










Thursday 9 June 2022

गंगा गीत

       सुनो हे माँ मेरे उर की तान

       क्यों मुँह फेरी गैर नहीं हूँ

        तेरी हूँ संतान,सुनो हे.....             

        दुखिता बनकर जीती आई

      पतिता बनकर शरण में आई

     मुझ पर कर एहसान,सुनो हे......

       मोक्ष-दायिनी पाप-नाशिनी

      कहलाती संताप-हारिणी

       प्रेम का दे दो दान,सुनो हे......

       शांति-सद्गति सब-कुछ देती

      जन-जन करते तेरी भक्ति

      करके हरपल ध्यान,सुनो हे.......

        पुण्यमयी तेरी जल-धारा

        तूने सगर पुत्रों को तारा   

       तेरी महिमा महान,सुनो हे.......

        तेरी सुमिरन जो भी करते

          नर नारी सब मुक्ति पाते

          तू शिव की वरदान,सुनो हे.......

भारती दास ✍️




Friday 3 June 2022

भक्ति को ना बदनाम करें

 भक्ति को ना बदनाम करें

गौरी शंकर का गुणगान करें....

भक्ति के व्यापक अर्थ जो जाने

सत्य ही शिव है वो पहचाने

मूढमति उलझन में भटके

प्रभु नागेश्वर का ध्यान करें....

तमस अनेकों होती असुर में

धैर्य की शक्ति होती है सुर में

विवश विकल जब होती धरती

हर की महिमा का बखान करें....

सीमाबद्ध नहीं होते दिगंबर

कण कण में बसते हैं ईश्वर

मौन सभा होती प्रांगण में

डमरूधर सच्चा निदान करें....

कामना जो भी है मनकी

उपासना करते हैं उनकी

भय नहीं है कभी किसी से

महेश्वर सदा कल्याण करें....

भारती दास ✍️



Sunday 29 May 2022

हे सर्वस्व सुखद वर दाता

 हे सर्वस्व सुखद वर दाता

चिर आनंद जहां पर पाता

हरी भरी सी सुभग छांव में 

हंसते गाते सब सहज गांव में 

उस मनहर बरगद की छाया

जहां विद्व जन वेद को ध्याया

पतित पावन अति मनभावन 

मोक्ष प्रदायक रहते नारायण

जप तप स्तुति धर्म उपासना

योगी यति करते हैं कामना

ब्रह्म देव श्री हरि उमापति

कष्ट क्लेश हरते हैं दुर्मति

यमदेव हर्षित वर देते

आंचल में खुशियां भर देते

सत्यवान ने नव जीवन पाई

मुदित मगन सावित्री घर आई

करती प्रार्थना सभी सुहागिन 

वैसे ही सौभाग्य बढ़ती रहे हरदिन.

भारती दास ✍️









Wednesday 18 May 2022

रहे सर्वथा उन्नत जन्मभूमि

 जिन गलियों में बचपन बीता

जिन शैशव की याद ने लूटा

उसी बालपन के आंगन में

हर्षित हो कर घूम आये हैं.

स्मृति में हर क्षण मुखरित है

दहलीज़ों दीवारों पर अंकित है

स्नेह डोर से बंधे थे सारे

पुलकित होकर झूम आये हैं.

नहीं थी चिंता फिकर नहीं था

भाई बहन संग मोद प्रखर था 

सुरभित संध्या के आंचल में

पुष्प तरू को चूम आये हैं.

न जाने कब हो फिर आना

इक दूजे से मिलना जुलना

रहे सर्वथा उन्नत जन्मभूमि

जहां स्वप्न हम बुन आये हैं.

भारती दास ✍️




Saturday 7 May 2022

पोषित करती मां संस्कार

 दशानन के पिता ऋषि थे

पर मिला नहीं शिक्षण उदार

आसुरी वृत्तियों से संपन्न

माता थी उनकी बेशुमार.

दारा शिकोह को भाई ने मारा

कितना कलंकित था वो प्यार

शाहजहां को कैद किया था

ऐसा विकृत था परिवार.

वहीं दशरथनन्दन की मां ने

दी थी सुंदर श्रेष्ठ विचार

श्रीराम का सेवक बनकर

अपनाओ सदगुण आचार.

संघमित्रा और राहुल को पाला

यशोधरा ने देकर आधार

तप त्याग की महिमा सिखाई

बौद्ध धर्म का किया प्रसार.

ब्रह्म वादिनि थी मदालसा

पुत्रों को दी थी ब्रह्म का सार

सिर्फ कर्म स्थल ये जग है

विशुद्ध दिव्य तुम हो अवतार.

पिता हमेशा साधन देता

मां ही देती संपूर्ण आकार

सद आचरण प्रेम सिखाती

देती दंड तो करती दुलार.

सही दिशा उत्कृष्ट गुणों से

पोषित करती मां संस्कार

जैसा सांचा वैसा ही ढांचा 

जिस तरह गढता कुंभकार.

भारती दास ✍️



Saturday 30 April 2022

अपना स्वेद बहाते हैं वो

 

दिन डूबा संध्या उतरी है 

पशुओं की कतार सजी है

खेतों और खलिहानों से

आने को तैयार खड़ी है.

बिखरी लट है कृषक बाला की

मलीन है उसका मुख मस्तक भी

कठिन परिश्रम करने पर भी 

दीन दशा गमगीन है उसकी.

स्वर्ण सज्जित भवन हो उन की 

चाह नहीं है ऐसी मन की

मिले पेट भर खाने को 

दर्द वेदना ना हो तन की.

दीनता का रूधिर पीकर

जीते हैं रातों को जगकर

भूमि का भी हृदय क्षोभ से

रह जाते है कंपित होकर.

धूपों में बरसातों में भी

तपते भींगते रहते हैं जो

वही गरीबी को अपनाकर

निष्ठुर पीड़ा सहते हैं वो.

विटप छांह के नीचे बैठे

गीले गात सुखाते हैं 

कामों में फिर हो तल्लीन

अपना स्वेद बहाते हैं.

भारती दास ✍️





Sunday 24 April 2022

बंधन मोक्ष का बनता कारण

 मन ही शत्रु मन ही मित्र

मन ही चिंतन मन ही चरित्र

मन से ही है दशा-दिशा

मन से ही है कर्म समृद्ध.

मन ही शक्ति मन ही ताकत

मन ही साथी मन ही साहस

हरता विकार दुर्बलता मन

मन ही आनंद की देता चाहत.

सत्य-असत्य और क्रोध तबाही

पग-पग पर देता है गवाही

भावनाओं में है रोता हंसता

मन रहता गतिमान सदा ही.

मन ही दर्पण मन ही दर्शन

मन ही राग वैराग तपोवन

मन से ही संगीत सुहाना

समस्त कामना जीवन है मन.

जहां तहां करता मन विचरण 

प्रयत्न शील रहता है क्षण-क्षण

बंधन मोक्ष का बनता कारण

खुद ही मन करता अवलोकन.

भारती दास ✍️




Saturday 9 April 2022

श्री राम राघव जय करे


हे जग आराधक भक्त साधक 

श्री राम-राघव जय करे

दीन पोषक क्षोभ शोषक

मोह नाशक भय हरे.

कमल लोचन भगत बोधन

शील संयम शुभ करे

आदर्श वाचन पतित पावन

दंभ रावण का हरे.

हे तप तितिक्षा शौर्य शिक्षा

रत परीक्षा में रहे

सफल साधना अटल कामना

शत वेदना थे सहे.

अभिराम मुख सुखधाम सुख

दानव दमन करते रहे

हनुमान के हर रोम में 

प्रभु राम जी बसते रहे.

हे विराट शोभा प्रभात आभा

साध यही मेरी नाथ हो

प्रति उर निवासी गुण शील राशि

अगाध नेह अनुराग हो.

हे अगम अगोचर परम मनोहर

विषाद नाश विकार हो

करुणा नयन पद में नमन

दिन-रात ही स्वीकार हो.

भारती दास ✍️





Saturday 2 April 2022

नवरात्र महापर्व है

 

नवरात्र महापर्व है
शक्ति का संधान है
अभीष्ट सिद्धि प्राप्ति का
श्रेष्ठ अनुष्ठान है
तन तपाते रहे
मन साधते रहे
मधुर आचरण से
सदभाव साजते रहे
वसुंधरा लगती नई
पावनता उदार है
उपासना-आराधना की
भावना अपार है
कठोर श्रम सदा करें
विकृति ना विराट हो
सृजन उद्देश्य से जुड़ें
सौभाग्यपूर्ण राष्ट्र हो
विश्व का वातावरण
दुश्चक्र से अब मुक्त हो
मनुष्य की अब चेतना
संस्कृति से अनुरक्त हो
साधना शालीनता से
शक्ति का हो अवतरण
असुरता को दे चुनौती
दंभ असुर का हो दमन

भारती दास ✍️

Saturday 26 March 2022

ज्येष्ठ सुपुत्र अपना बनाया

 


कहते हैं कि समुद्र मंथन से

निकला घड़ा जो भरा था विष से

शिव के कालकूट पीने पर

गिरी थी कुछ बूंदें धरती पर

जहर मिली मिट्टी को मथकर

नर नारी को बनाया ईश्वर

अपना ज्येष्ठ सुपुत्र बनाया

पुष्प के जैसा उन्हें सजाया

विश्व चमन को विकसित करने

कर्तव्य सत्कर्म समर्पित करने

उत्कृष्ट मन श्रेष्ठ भाव दिया

उपहार में उनको सद्भाव दिया

परिस्थितियां हो कितने कठिन

नहीं करते कभी मुख मलिन

पलक झपकते ढल जाते हैं

अनुरुप समय को कर लेते हैं

परंतु विष जब होता हावी

तब ईर्ष्या हो जाता प्रभावी

प्रलयकारी दृष्टि बन जाती

विनाशकारी सृष्टि कर जाती

जग क्रंदन करता ही रहता

घात-प्रतिघात चलता ही रहता

ईर्ष्या रुपी गरल समाया

मानव के मन को भरमाया.

भारती दास ✍️


Monday 21 March 2022

हे श्रेष्ठ युग सम्राट सृजन के

 हे श्रेष्ठ युग सम्राट सृजन के

नमन अनेकों विराट कलम के....

लेखों के सुन्दर मधुवन में

सीखों के अनुपम उपवन में

मधुर विवेचन संचित बन के

नमन अनेकों विराट कलम के....

लोभ-दंभ की जहाँ है काई

ह्रदय में सबकी घृणा समाई

लिखे हजारों ग्रन्थ शुभम के

नमन अनेकों विराट कलम के....

तुलसी-सूर चाणक्य की महता

जिसने लिखा मन की मानवता

सत्य ही शिव है गहन लेखन के

नमन अनेकों विराट कलम के....

संवेदन बन जाये जन-जन

महके मुस्काए वो क्षण-क्षण

तंतु बिखर जाते बंधन के

नमन अनेकों विराट कलम के....

जाने कितने छंद सृजन के

कह देती है द्वन्द कथन के

नैन छलक पड़ते चिन्तन के

नमन अनेकों विराट कलम के....

भारती दास ✍️


Friday 11 March 2022

अस्वस्थ तन गमगीन पल

 अस्वस्थ तन गमगीन पल

करती बेचैन हरपल ये मन

अंतस में भर आता है तम

उदास बहुत होता चिंतन.

मजबूरियों के घेरती है फंद

गतिशीलता पड़ जाती है मंद

निशि-वासर रहता है द्वंद

जीवन कहीं न हो जाये बंद

जब होती है कोई बीमारी

महसूस सदा होती लाचारी

चरणों में झुकाहै शीश हमारी

अतिशय करती हूं ईश आभारी.

भारती दास ✍️

Monday 28 February 2022

आनंद कंद कहलाते शंकर

 

    

आनंद कंद कहलाते शंकर

उर में चेतना देते भर-भर

रहते ऐसे क्यों मौन अनंत

जैसे निशा का हो ना अंत

हे महेश्वर हे सुखधाम

तीनों लोकों में फैला नाम

अपनी व्यथा भी कह नहीं पाते

पीड़ा का विष पीते जाते

किये हैं अबतक जितने पाप

मैंने अनुचित क्रिया कलाप

सारे दुनियां के दुःख-हर्ता

याचक बनकर हर कोई आता

अभिनन्दन की चाह न मुझको

निंदा की परवाह न मुझको

मिल जाता है मान धूल में

मिट जाता है शान भूल में

मेरा पुण्य जगे दुःख भागे

कबसे बांधी प्रेम की धागे

अब निराश यूं ही न करना

व्यर्थ न जाये मेरी साधना

नाथ सुनो न करूण पुकार

अंधकार से लो न उबार . 


भारती दास ✍️ 

       

Saturday 19 February 2022

ऋतुपति के घर में

 ऋतुपति के घर में

पुष्प की अधर में

कोयल की स्वर में

प्रणय की पुकार है.

उषा की अरूणिमा

सौन्दर्य की प्रतिमा

अनुराग की लालिमा

जीवन की उदगार है.

वसुधा अभिराम है

पीत परिधान है

सलज सी मुस्कान है

हर्ष की खुमार है.

अनंत ही रमणीय

दिग-दिगंत है प्रिय

छवि नवल सी हिय

उमंग की बहार है.

नीड़ में युगल विहग

नेह से बैठे सहज

निहारते नयन पुलक

मृदुल सी मनुहार है.

भारती दास ✍️



Sunday 13 February 2022

ऋषि कश्यप की तपोभूमि वो

 

ऋषि कश्यप की तपोभूमि वो 

सूफी मीर की साधना धाम 

हिमालय की मुकुट सी शोभा 

मुख सौन्दर्यमयी ललाम .

लेकिन दर्द की गहरी रेखा 

भय विषाद में जीवन होता

प्रताड़ना निरंतर है जारी 

रक्त सदा ही बहता रहता.

घन अवसाद का भारी है

अपनों को खोता परिवार 

मिट जाये ये शाप व्यथा का

बरसे ना यूं अश्क बेजार.

सलज शेफाली खिले जो हंसकर

पुलक-पुलक कर गाये उर 

मुस्काये बासंती रजनी 

मधुमास सुखद भर आये घर.

निखर उठे सौंदर्य सलोना  

मस्त सुहाना दिन फिर आये

अब ना हो कोई पुलवामा

मुग्ध मधुर कश्मीर हो जाये.

भारती दास ✍️

Thursday 10 February 2022

कर्म ही परिचय रह जायेगा

 विश्व पटल पर सबने कह दी

अपने मन की वेदना सारी

काल ने कैसे छीना सबसे

इस धरती की रचना प्यारी.

दुख सागर में डूबा मन था

भीगे नयनों में थी पीड़ा

बागों में सहमी कलियां थी

मुरझाया था कण-कण सारा.

वो राग भरी स्वर की लहरी थी

थी कोकिल-कंठी गीतों की गूंज

सुर-सुन्दरी की वो तनया  थी

तप संयम की ज्योति-पूंज.

अधर-अधर पर गुंजित होगा

उनके मधुर गीतों का गान

अमर रहेगी हर इक उर में

भारत की पुत्री सुबहो शाम.

अंतिम सत्य यही जीवन का

जो आया है वह जायेगा

चिर निद्रा में सो जाने पर

कर्म ही परिचय रह जायेगा.

भारती दास ✍️


Friday 4 February 2022

ऋतु वसंत की अनुभूति


सभी ऋतुओं में श्रेष्ठ होने के कारण वसंत को ऋतुराज कहा जाता है.इस ऋतु के आगमन के साथ ही प्रकृति का सुन्दर स्वरुप निखर उठता है.पौधे नई-नई कोपलों और फूलों से आच्छादित हो जाते हैं.धरती सरसों के फूलों की वासंती चादर ओढ़कर श्रृंगार करती है.पुष्पों की मनमोहक छटा व कोयल की कूक सर्वत्र छा जाती है.प्रकृति सजीव जीवंत और चैतन्यमय हो उठती है.यही आनंद वसंत उत्सव के रूप में प्रकट होता है.मनुष्य के रग-रग में मादक-तरंग,उमंग व उल्लास की नव-स्फूर्ति भर जाती है.तन-मन और व्यवहार में सुन्दर एवम सुमधुर अभिव्यक्तियाँ झलकने लगती है.कहते हैं कि प्रकृति मुस्कुराती है तो जड़-जीव में भी मुस्कुराहट फ़ैल जाती है.वातावरण में व्याप्त सुगंध सभी घटकों को अपनी ओर आकर्षित करने में सक्षम होते हैं.विभिन्न सुरभियों से विचारों में दिव्यता और पावनता का अनुभव महसूस होने लगता है.ह्रदय स्वतः पुलकित हो उठता है.इससे संबंधों एवम रिश्तों में प्रगाढ़ता और आत्मीयता का बोध प्रकट होता है.

         प्रकृति जब तरंग में आती है तब वह गान करती है.इस गान में मनुष्य को समाज का दर्शन प्रतिबिम्ब होता है.जैसे प्रेम में आकर्षण,श्रद्धा में विश्वास और करुणा में कोमलता का एहसास होने लगता है.जीवन में कुछ नया करने की चाह जगती है.कोमल कल्पनायें कितने उत्सवों का आह्वान करने लगती है.जीवन की भावनाएं मधुपान करके मदमस्त होने लगते हैं.मन की तृषित आशाओं को मुराद मिल जाती है.

      ये ऋतू तो शब्दातीत है.काव्यों व महाकाव्यों के अनंत भंडार है.आनंद की वर्षा करना तो इसका स्वाभाव है.यह पथ है मधुमासों का,विश्वासों का,

चिर अभिलाषाओं का, अनगिनत एहसासों का,श्रेष्ठतम संदेशों का, रंगों और सुगंधों का,प्रेम की अभिव्यक्तियों का और क्या कहूँ इस वसंत के रोमांच का,जिसके आने से संस्कृति को सद्ज्ञान और संस्कारों को नवजीवन मिलता है.

      वासंती रंग है पवित्रता के,

उमंगें है प्रखरता के,इन रंगों में प्रभु का स्मरण छलकता है.विवेक के प्रकाश है तो वैराग्य के प्रभाष है,त्याग की पुकार है और बलिदान की गुहार है तभी तो भारत के सपूत निष्ठावान और शोर्यवान है.ऋतुराज वसंत गूंजता है प्रेम में ,महसूस होता है लोक आस्था में,प्रणय की प्रतीक्षा में,भावना की उत्कंठा में,सभ्यता के जुड़ाव में,प्रकृति की उत्साह में वसंत एक सत्य है .यों ही उसे कुसुमाकर नहीं कहते हैं.

     वसंत मन की धरती पर सरसों के खेत में पीली चुनर ओढ़कर चुपके से आता है.धरा के नयन से झांकता है.पत्ता-पत्ता पुलकित होता है.जिस तरफ भी नजर जाती है वहीँ आनंद की विभूति है.सचमुच वसंत एक अनुभूति है.कामनाएं जाग जाती है.आलस भाग जाती है.मनमोर खुशियों से भरी होती है.सुर-सुंदरी के कदम पड़ने से घर-आंगन-चौबारे दमक उठते हैं.चारों ओर बहारें छा जाती है.वासंती छटा निखर उठती है.

     वसंत ज्ञान की देवी भगवती सरस्वती की जन्म-दिवस भी है.सृष्टि के आदिकाल में मनुष्य को इसी शुभ अवसर पर विद्द्या-बुद्धि,ज्ञान-संवेदना का अनुदान मिला था.भगवती वीणा-पाणि की अनुकम्पा ने विश्व वसुधा की शोभा-गरिमा में चार चाँद लगाये हैं.ज्ञान की अवतरण से वसंत और भी अति पावन बन जाता है.ज्ञान ही वह निधि है जो मानव के साथ जन्मों तक यात्रा करती है. वसंत मानवता का महान संदेशवाहक है.नई दिशा प्रदान करते हैं.आशा है सबको  वसंत की सुखद अनुभूति हो.


 ज्ञान की घटक भरे, 

संवेदना छलक पड़े

स्नेह वृन्द महक उठे,

सद्भाव के सुमन खिले

सशक्त राष्ट्र भक्ति हो,

साहस अपार शक्ति हो 

लक्ष्य वेध दृष्टि हो 

ये वसंत सुख वृष्टि हो.

भारती दास ✍️

Saturday 29 January 2022

काव्य सदा देता है सूकून

 

मनुष्य होते बहुआयामी

समरसता में ही जीते वे

तन-मन और भावों के बीच

सामंजस्य कई बनाते वे.

सिर्फ तर्क ही जो अपनाते

मस्तिष्क से प्रेरित होते वे

सुमन भाव के खिला नहीं पाते

सौंदर्य से वंचित होते वे.

संकीर्ण संकुचित होती दृष्टि

नहीं करते महसूस उल्लास

रुखी सुखी जीवन में न जाने

होते कितने गम विषाद.

पद प्रतिष्ठा धन का अर्जन

कुशल प्रवीण हो कर लेते हैं

पर वे जीवंत पुलकित न होते

राग विहीन जब उर होते हैं.

हृदय तरंगित कर देता है

काव्य सदा देता है सूकून

निज की झलक दिखा देता है

बनकर दर्पण गीत प्रसून.

भारती दास ✍️


















Wednesday 19 January 2022

अमन चैन का खींचते दामन.

 


अहंकार बल दर्प कामना

निज हठ को ही सत्य मानना

मिथ्या ज्ञान द्वेष भावना

पर-मानव की निंदा करना.

ऐसी वृत्ति आसुरी होती

अनिष्ट आचरण जिसकी होती

दोष ही दोष दिखाई देती

कर्तव्य बोध न सुनाई देती.

गीता में कहते नारायण

बार-बार गिरते हैं नराधम

जो विध्वंस का बनते कारण

अमन चैन का खींचते दामन.

अंत सुनिश्चित हो जाता है

जो क्रूर शठ हिंसक होता है

ब्रम्ह स्वरूप जो शिक्षक होते

हठी उदंड को दंडित करते.

तुलसी दास जी कहते साईं

दृष्ट का संग ना हो रघुराई

नरक वास भले हो गोसाईं

साथ ना हो जो करते बुराई.

दृग-गगरी जिसकी खुल जाये

ईश-अवतारी वही बन जाये

दुर्बल की लाठी वो कहाये

दीन की साथी बन मुस्काये.

भारती दास ✍️


Wednesday 12 January 2022

एक प्रखर युवा तपस्वी

 (जन्मदिन-विशेष)

12  जनवरी सन 1863 की सुबह भारत देश के लिए प्रेरक सुबह थी .इसी दिन स्वामी विवेकानंद जी के रूप में ईश्वरीय सन्देश का अवतरण हुआ था .श्री रामकृष्ण परमहंस जी ने इस दैवी अवतरण की अनुभूति अपने समाधिस्थ चेतना में कर ली थी. उन्होंने बड़े ही सहज भाव से कहा - ’’नरेन्द्र को देखते ही मैं जान गया कि यही है वो जिसे देवों ने चुना है ‘’.स्वामी जी का बचपन का नाम नरेन्द्र था जो बाद में विश्ववन्द्य स्वामी विवेकानंद के नाम से विख्यात हुए .

            स्वामी जी की चेतना ने सदा ही भारत के युवाओं के ह्रदय को झंकृत किया है .श्री अरविन्द ,नेताजी सुभाषचंद्र बोस ,महात्मा गांधी,जवाहरलाल नेहरु तथा आज के भी कई नेताओं और युवाओं के आदर्श रहे हैं .उनका सुन्दर मुख ,आकर्षक व्यक्तित्व ,सिंह के समान साहस,निर्भय भाव तथा उनकी आखों की गहराई हमेशा प्राणी –मात्र के लिए करुणाका सागर दिखाई देता है .अशिक्षित पददलित व गरीब मनुष्यों के प्रति अपार प्रेम व पीड़ा दोनों ही दर्शित हुए है .उनके स्वरों में सिंह की गर्जन है ,मधुर संगीत का प्रवाह है असीम प्रेम है दृढ विश्वास भी है.संभवतः इसीलिए उनका प्रत्येक शब्द युवाओं के लिए ही ध्वनित हुआ है .उनकी बातों का प्रभाव विद्युत् तरंगों की भांति असर करती है .

              जब कोई भी आदमी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए परिश्रम करता है परन्तु असफल होने पर टूट जाता है उसे हताशा घेर लेती है और वो आत्महत्या का निर्णय लेता है या निराशा से समझौता कर लेता है ,उस समय स्वामीजी की कही हुई उक्तियाँ एक नया राह दिखाती है .उनके व्याख्यान का अल्पांश ;-----



      ‘’ असफलता तो जीवन का सौन्दर्य है. यदि तुम हजार बार भी असफल हो तो एक बार फिर सफल होने का प्रयत्न करो .उनका ही जीवन सौन्दर्यमय है जिनके जीवन में निरंतर संघर्ष है .मानव जीवन का संग्राम ऐसा युद्ध है जिसे हथियार से नहीं जीता जा सकता .यह ध्रुव सत्य है की शक्ति ही जीवन है दुर्बलता जीवन की मृत्यु है .शक्ति ही अनंत सुख है ,चिरंतन है शाश्वत प्रवाह है.दुर्बल मन के व्यक्ति के लिए इस जगत में ही नहीं किसी भी लोक में जगह नहीं है .दुर्बलता शारीरिक व मानसिक रूप से तनाव का कारण है ,चेतना की मृत्यु है और  इसीलिए सभी प्रकार की गुलामी की ओर ले जाता है .ऐसे फौलादी विचार व मजबूत इरादों वाले लोगो की जरुरत है जिनकी वृति लोभ और दोष से परे हों.आत्म शक्ति से भरा व्यक्ति असफलता को धूल के समान झटककर फेंक देता है और निःस्वार्थ मन से अपने जीवन को सुखमय बना देता है.संवेदना का भाव प्रवाहित हो ,सबके के लिए दर्द हो, गरीब,मूर्ख और पददलित मनुष्यों के दुःख को अनुभव करो.संवेदना से ह्रदय का स्पंदन बढ़ जाये या मष्तिष्क चकराने लगे और ऐसा लगे की हम पागल हो रहे हैं तो इश्वर के चरणों में अपना ह्रदय खोल दो तभी शक्ति सहायता और उत्साह का वेग मिल जायेगा.मैं अपने जीवन का मूल मंत्र बताता हूँ की प्रयत्न करते रहो जव अन्धकार ही अन्धकार दिखायी दे तब भी प्रयत्न करते रहो तुम्हारा लक्ष्य मिल जायेगा.क्या तुम जानते हो की इस देह के भीतर कितनी उर्जा,कितनी शक्तियां, कितने प्रकार के बल छिपे पड़े हैं सिर्फ उसे बाहर निकलने की जरुरत है .उस शक्ति व आनंद का अपार सागर समाये हो फिर भी कहते हो की हम दुर्बल हैं .

”(व्यावहारिक जीवन में वेदान्त से)


उठो, जागो,और ध्येय प्राप्ति तक रुको नहीं.


ये दिव्य चेतना ने जो देह धारण की थी वह आज भले ही न हो पर उनकी प्रखर तेजस्वी स्वरुप देश की युवाओं को प्रेरित करते हैं और करते रहेंगे.

भारती दास ✍️

Wednesday 5 January 2022

मानते नहीं बच्चे बड़ों की बात


प्रमुख समस्या बनी है आज

मानते नहीं बच्चे बड़ों की बात

ज्ञान उपदेश वे नहीं समझते

भय दबाव से वे नहीं डरते

मोबाइल के संग में उलझे रहते

पढ़ाई-लिखाई में सहज न होते

माता पिता को समय नहीं है

गहन अनेकों तथ्य यही है

आसान नहीं है पालन पोषण

बाल निर्माण और अनुशासन

संग में उनके रहना पड़ता

हर मुश्किल को सुनना पड़ता

व्यवहार आचरण गढना पड़ता

चित्त को संयम रखना पड़ता

बाल मन को समझाना पड़ता

धीरज धारण करना पड़ता

माता पिता के कार्य कलाप

करते अनुसरण वे हर इक बात

थोड़ी कड़ाई थोड़ा प्यार

ना हो उपेक्षित सा व्यवहार

भावनात्मक हो उनका पोषण

हो व्यक्तित्व की जड़ों का सिंचन

बुरे लत का हो ना शिकार

सही दिशा में  मिले संस्कार

जीवन बहार बन खिल जायेगा

आदर्श मिशाल वो बन जायेगा.

भारती दास ✍️