Saturday 17 June 2017

उन श्रेष्ठ पिता के चरणों



देकर अपने नाम सदा ही
जिसने हमें तराशा
इक कोमल स्पर्श को पाकर
तन-मन जिसका हर्षा.
दृष्टि में कोमलता भरकर
जिसने सिखाई भाषा
देख के इक सुन्दर स्मित को
जिसने बोई आशा.
जिनके भावों के तूली से
भावुकता का प्रवाह हुआ
जिनके मौन संवेदन से
रोम-रोम आबाद हुआ.
ये देह-प्राण उर-स्पंदन
जिनके लिए है रोता
उन श्रेष्ठ पिता के चरणों में
झुकता रहेगा माथा.         

No comments:

Post a Comment