Friday 31 October 2014

यौवन



मदिरा सी मदमस्त ये यौवन  
अलसाई अलमस्त ये यौवन
होता स्वच्छंद उन्मुक्त ये यौवन
चिंता-फिकर से मुक्त ये यौवन
सुन्दर सुखद अवस्था यौवन
खुशियों से दमकता यौवन
प्रचंड उर्जा से सज्जित यौवन
या आवेग से विचलित यौवन
भोगवृति की लालसा यौवन
या योगी-यति का श्रेष्ठ सा यौवन
समाज राष्ट्र का सपना  यौवन
या दुखद विडंबना यौवन
नव सृजन का कल्पना यौवन
या दुश्वृति का वर्जना यौवन
संस्कारित साधना सा यौवन
या कुवृति का वासना यौवन
बुढ़ापे का पालना है यौवन
या जर्जर सा कामना यौवन
जीवन की उपयुक्त समझ
यौवन सिखलाती है समस्त
भारत का सफलतम यौवन
बना कुशल मार्गदर्शक यौवन
ईश-प्रदत अनुपम उपहार
            क्यों  करे कोई बर्बाद बेकार .         

Wednesday 22 October 2014

आलोक बिखरे उजास की



आलोक हो आभास की
तमस में उजास की
स्नेह युक्त आश की
सुखमय सुबास की .
आलोक हो स्वच्छंद की
मन की उमंग की
ह्रदय की तरंग की
सुरभित सुगंध की .
आलोक हो उत्साह की
शक्तियां प्रवाह की
अश्रु न हो आह की
विकृति ना हो चाह की .
आलोक हो सम्मान की
भाव हो कल्याण की
अपनी स्वाभिमान की
चिंतन और ज्ञान की .
आलोक हो विश्वास की
बोध और एहसास की
स्मित और सुहास की
आनंदमय प्रकाश की .
 
दिवाली की हार्दिक शुभकामना  

Thursday 16 October 2014

जागो युग सेनानी



युग का मुर्गा बांग दे रहा
जागो युग सेनानी .
नये वेश में करनी है
भारत की अगवानी .
दमकेगा अब गाँव-गाँव में
स्वच्छता भरी जवानी .
मिल-जुल कर हर कार्य करे
करे ना अब  मनमानी .
सृजन की लहरे मारे हिलोरे
नव निर्माण है आनी.
लोक शिक्षक बनकर उभरे
नव यौवन मस्तानी .
कार्य अधूरे जो बाकी है
पूरे मन से करेंगे .
आत्म निर्भर हम बनेंगे
श्रम स्वीकार करेंगे .
गरीब बनकर जीना सीखे
कंगाली ना घेरे .
योग्यता बढती ही जाये
काबिल बनकर उभरे .
सपने हो या बने हकीकत
नव चितन तो आये .
हम सबका कर्तव्य यही है
हाथ से हाथ मिलाये .
इसी सोच पर अब टिका है
पहले अपना करे सुधार.
युग आमंत्रण कर रहा है
सुने सदा इसकी पुकार .   
     

Friday 3 October 2014

निर्बल के बल राम



 एक टिटहरी जूझ रही थी
चोंच में रेत को भर रही थी
सुबह से आखिर शाम हुई थी
संकल्प में ना कमी हुई थी
समुद्र ने तो चुटकी ली
क्यों प्राण गंवाने पर हो तुली
तुम मुझे क्या भर पाओगी
विशाल जल सूखा पाओगी
नादान दुर्बल थी टिटहरी
अधिकार पाने पर थी अड़ी
करती रही अनुनय विनय
हे समुद्र देव हैं आप सदय
ये अंडे है मेरे धरोहर
मेरे जीवन-मूल्य से बढ़कर
मेरा सुन्दर होगा परिवार
बच्चों से सजेगा घर-संसार
इसके बिना ना जी पाऊँगी
जीते जी मैं मर जाऊँगी
रो-रो करती रही गुहार
फिर भी समुद्र न सुनी पुकार
जो दुर्बल है जो निर्बल है
उसके साथ भगवान का बल है
महर्षि अगस्त आ गए वहां
न जाने वे थे कहाँ
उन्होंने वो सबकुछ देखा था  
समुद्र ने जो कहा सुना था  
करुणा से भर उठे मुनि
दया द्रवित हो उठे मुनि
समुद्र के दिल को झकझोरा
हर पहलू को मन से जोड़ा
फिर भी समुद्र ने किया इनकार
अहंकार में डूबा बेकार
मुनि अगस्त ने इक पल सोचा
अंजुरी में वारिधि को समेटा
बोले तुम हो महा-विशाल
तो मेरे तप भी है विकराल
मेरे लिए तुम हो चुल्लू-भर
पर करता रहा मैं सेवा निरंतर
दुर्बलों को दिया सहारा
मुश्किलों से सदा उबारा
समुद्र ने अस्तित्व गंवाया
जन कल्याण की कसमें खाया
टिटहरी ने अंडे को पाया
मुनि चरणों में शीश नवाया
मिली प्रसन्नता ख़ुशी तमाम
               गाती रही निर्बल के राम .