Friday 27 June 2014

बुढ़ापा है जीवन की शान



सफ़ेद बालों से होती पहचान
बुढ़ापा है जीवन की शान
सूर्योदय की पहली लाली
बचपन की मौजे मतवाली
दोपहर की प्रखर सी किरणें
उमंग-तरंग जो तपती मन में
डूबते सूर्य की गोधुली शाम
मनुष्य जीवन की है विश्राम
उम्र की हर पराव चढ़कर
बुढ़ापा आती है समय पर
लेकर सुन्दर सोच महान
सुभग सृजन करके अविराम
देकर अपनी क्षमता प्राण
गरिमामय चिंतन अभियान
लोक पथ हितकारी काम
करते रहे निज देकर ज्ञान
अनुभवों की धार से
अज्ञान-तम को प्यार से
प्रेरणा में रंग भरकर
परिवार में आदर्श बनकर
परंपरा के साथ चलकर
मार्गदर्शन कर के निरंतर
होकर सदा स्फूर्तिवान 
जीते हैं जो उम्रे तमाम
वो बुढ़ापा है महान
          कहलाते जीवन की शान .      

Friday 13 June 2014

पितृ - दिवस




खुदा ने मुझको सजा ये दी है
पिता-दिवस में पिता नहीं है
हमारी उर की व्यथा यही है
कहाँ पर होंगे पता नहीं है
बरगद की छाया सी स्नेह
सदा बरसता उनका नेह
उनकी करुणा जब बहती थी
ये दुनिया सुन्दर दिखती थी
उनके बिना सूना घर सारा
हर कोने में उन्हें पुकारा
विधि ने ऐसी नियम बनाई
झेलनी पड़ती विषम जुदाई 
अपने हो जाते है पराये
 ढूंढते रहते उनके साये
पीड़ित भावना थकित चेतना
किससे कहूँ मै व्यथित वेदना
सब कुछ है अपने जीवन में
फिर भी कमी सी रहती मन में
अपनों से न कोई जुदा हो
चाहे कितनी बड़ी खता हो
जहाँ कहीं  हो उनके चरण
        हम करते हैं उन्हें नमन .    

Wednesday 11 June 2014

माँऐं हो गयी निःसंतान

व्यास नदी ने ले-ली जान
 माँऐं हो गयी निःसंतान
 ह्रदय विदारक देख के मंजर
 रो रहा मन तड़प-तड़पकर
 विधाता ने की ऐसी परिहास
 मिटा दर्प और मिट गयी आस
 मौत मिली जो उन्हें अकाल
 कहाँ मिलेंगे वो माँ के लाल
 दूध का कर्ज चुकाया नहीं
 जिम्मेदारी निभाया नहीं
हर गलती की सजा है मिलती
फर्क है इतना की किसे है मिलती
निर्दोष यूँ ही मर जाते हैं
रक्षक बात बनाते हैं
जहाँ पर मन-मानी की हद है
सर्वनाश तो सुनिश्चित है
हो हुकूमत ऐसी शासन
जो रखे कायम अनुशासन
है ईश्वर से इतनी विनती
               मिले उनकी आत्मा को शांति .