Friday 18 April 2014

युग परिवर्तन की है वेला

आज सभी की चाह यही है
सबकी मांग अथाह यही है
सभ्य समाज की हो निर्माण
हो श्रेष्ठ सुन्दर अभियान
अनगिनत दुष्प्रवृति भरी है
कलह-कपट कुरीति भरी है
शोक-संताप देरों है व्याप्त
निदान-समाधान नहीं प्रयाप्त
नीति बदले रीती बदले
सोच-समझ की विधि भी बदले
एक सा वेग हो सबके मन में
एक आवेग हो सहगमन में
जातिवाद –क्षेत्रवाद न फैले
प्रांतवाद न हो विषैले
राष्ट्र-हीत की चिंता कर पाये
मानव-हीत की इच्छा रख पाये
भारतीयता की हो सम्मान
यही भारत की हो पहचान
दुर्गम पहाड़ी के शिखर पर
लड़ते सैनिक जानें देकर
जिसके दम से चैन से रहते
आज उन्ही की क़द्र न करते
नैतिक बौद्धिक क्रांति आये
पारदर्शी होकर दिखलाये
नेता नहीं सृजेता बनकर
लोक-हीत का प्रणेता बनकर
भगीरथ सा पुरुषार्थ दिखाएँ
राजनीती को सफल बनाएँ
परिवर्तन की मन आई है
सार्थक मिलन की क्षण आई है
युग परिवर्तन की है वेला
          तिमिर चीड़ कर हुआ उजाला .           

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