Monday 28 October 2013

श्रद्धांजली

                
                                                                
             

हंस सवारी करते चले
ज्ञान सरोवर बनते चले
 सरस्वती के मानस पुत्र
 साहित्य के अनमोल अनंत
‘’एक इंच मुस्कान’’ को ओढ़े
‘’सारा आकाश’’ में उड़  चले
शोक  मनाये  देश  का मन
साहित्य का उजड़ा  है चमन

Wednesday 16 October 2013

तारे बनकर मुस्कायेंगे


मेरे पिताजी नहीं रहे
दुनिया छोड़ चले गए
चिर-निद्रा में होकर लीन
पंचतत्व में हुए विलीन
उनकी याद बसी हर –कण में
संस्कार देकर जीवन में
उन्होंने ने जो की उपकार
सुखद बना घर व परिवार
पितर बने वो पथ-प्रदर्शक
बने दयालु सदा सहायक
संवेदनाओं की गूंज बने
दया –स्नेह की पुंज बने
सौहार्द –भावना है अपार
हर –पल दे सुन्दर विचार
भाव मन की जूड़ी रहे
अनुकम्पा उनकी बनी रहे
सच ही किसी ने कहा- यहाँ है
जाने वाले मिले कहाँ  है
वापस कभी नहीं आयेंगे
तारे बन कर  मुस्कायेंगे